श्रीराम का संदेश पाकर भावुक हुई मां जानकी, लंका पर चढ़ाई हेतु वानर सेना ने समुद्र में बांधा सेतु

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रेणुकूट । हिण्डाल्को रामलीला परिषद् द्वारा हिण्डाल्को रामलीला मैदान पर आयोजित हो रही रामलीला के छठे दिन सीता हरण, शबरी भक्ति, राम-सुग्रीव मित्रता, बाली वध, सीताजी की खोज और लंका दहन आदि लीलाओं तथा सातवें दिन विभिषण शरणागत्, सेतु बंध रामेश्वरम् एवं रावण मन्दोदरी वार्तालाप आदि लीलाओं का बहुत ही सजीवता से मंचन कलाकारों द्वारा किया गया। छठे दिन की लीलाओं में लक्ष्मणजी द्वारा शूर्पनखा की नाक काट लेने पर शूर्पनखा अपने भाई रावण के दरबार पहुंच कर सीताजी की सुन्दर रूप का बखान करते हुए उनके हरण के लिए उकसाती है तब रावण अपने मामा मारीच के साथ वन में पहुंचते है और मारीच स्वर्ण मृग बन कर सीताजी को रिझाते है और सीताजी की जिद पर श्रीराम मृग पकड़ने उसके पीछे दौड़ते है। मारीच अपने मायाजाल से लक्ष्मण को श्रीराम की मदद को विवश कर देते और सीताजी के आग्रह पर लक्ष्मण रेखा खींच कर श्रीराम की मदद को चल देते है। मौका पाकर साधू वेश में रावण सीताजी का हरण कर लेते है और आकाश मार्ग से लंका की ओर ले चलते है। रास्ते में जटायू उन्हें भरसक रोकने का प्रयास करते है और रावण के प्रहार से मरनासन्न होकर धरती पर गिर जाते है। उधर कुटिया में लौटकर सीताजी को न पाकर दोनो भाई उन्हें ढूढ़ने निकलते है तब रास्ते में जटायू से उन्हें रावण द्वारा सीताजी के हरण की जानकारी मिलती है। आगे चलकर श्रीरामजी सुग्रीव से मिलते है और बाली-सुग्रीव युद्ध में बाली का वध करके सुग्रीव को राजगद्दी सौंप देते है। सुग्रीव व श्रीराम की मित्रता होती है और पूरी वानर सेना, सुसेन, हनुमानजी व सुग्रीव श्रीराम व लक्ष्मण के साथ सीताजी को लंका से लाने के लिए निकल पड़ते है। हनुमानजी सात समुंदर पार करके लंका पहुंच कर अशोक वाटिका में सीता माता से मिलकर उन्हें श्रीराम का संदेश देते है जिसे पाकर सीताजी भावुक हो उठती है। अंत में हनुमानजी विकराल रूप धारण करके पूरे लंका को तहस-नहस करते हुए आग लगा देते है और इसी के साथ छठे दिन की लीलाओं का समापन होता है। इससे पूर्व मुख्य अतिथि सेफ्टी हेड- मुकेश मित्तल, इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग हेड- संजीव गुप्ता, हिमांशु श्रीवास्तव, सुरेंद्र कुमार आदि ने गणेश पूजन कर छठें दिन की लीलाओं का शुभारंभ किया। 

वहीं सातवें दिन की लीलाओं में माता सीता को श्रीराम को ससम्मान लौटाने हेतु भ्राता विभिषण रावण से प्रार्थना करते है परन्तु अपने दंभ में चूर रावण को अपने छोटे भाई की बाते नागवार गुजरती है और विभिषण को लात मारकर लंका से निकाल देते है। तब विभिषण प्रभु राम की शरण में जाते है जहां श्री राम उन्हें रावण को वध कर लंका का राजा बनाने का वचन देते है। इसके पश्चात् सेतुबंध रामेश्वरम् की लीलाओं में भगवान श्रीराम की वानर सेना लंका पर चढ़ाई हेतु सागर किनारे इकट्ठी होती है परंतु भीषण सागर को देख कर सब चिंता में पड़ जाते है तब श्रीराम शिवलिंग की स्थापना करके भगवान शिव की आराधना करते हैं और सागर का यह तट रामेश्वरम् के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। इसके उपरांत नल-नील व वानर सेना के सहयोग से श्रीराम के जयकारे के साथ समुद्र में सेतु बांधते हैं और लंका की ओर प्रस्थान करते है। उधर मन्दोदरी समुद्र में सेतु बंध जाने व श्रीराम द्वारा लंका पर चढ़ाई की बात सुन कर व्याकुल हो उठती है और रावण को समझाने का प्रयास करती है परंतु दिग्भ्रमित व अपने दंभ में चूर रावण मन्दोदरी की बात नही सुनते और युद्ध की तैयारी में जुट जाते है और इसी के साथ सातवें दिन की लीलाओं का समापन होता है। इससे पूर्व सीआईएसएफ के डिप्टी कमांडेन्ट मुकेश कुमार, हिण्डाल्को हॉस्पिटल के सीएमओ भास्कर दत्ता एवं डॉ. राजीव रंजन आदि ने गणेश पूजन कर सातवें दिन की लीलाओं का शुभारंभ कराया।

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