काशी दुनियाँ की ऐसी प्राचीन नगरी है, जहाँ लोक और शास्त्र दोनों का अविछिन्न संबंध है

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*18-19 जून को अस्सी घाट पर होगा “बिरहा उत्सव” का आयोजन*

*लुप्त हो रहे लोगन परियों को बचाने का एक अनूठा प्रयास होगा*

वाराणसी। काशी दुनियाँ की ऐसी प्राचीन नगरी है, जहाँ लोक और शास्त्र दोनों का अविछिन्न संबंध है। शिव की पावन धराधाम में जितना महत्व शास्त्र का है, उतनी ही गहराई काशी प्रान्त में प्रचलित लोक गायन शैलियों का है। बिरहा, कजरी, ठुमरी, दादरा, बिरहिनी कहरवा, पूर्वी, छपरहिया, नयकवा, झूमर, लचारी, ढुनमुनियाँ, आल्हा, चौलर, चौताल, चौफटका का भी रहा है।आज ये लोक गायन शैलियाँ लुप्त हो रही हैं। 

        उत्तर प्रदेश शासन लोक जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान संस्कृत विभाग, उत्तर प्रदेश व जिला प्रशासन एवं सुबह ए बनारस के संयुक्त तत्वधान में बिरहा उत्सव का आयोजन लुप्त हो रहे लोगन परियों को बचाने का एक अनूठा प्रयास होगा। बिरहा भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी पर स्थित बिलहरा का कालांतर में बदलता स्वरूप है। जिसे आज गुरु बिहारी ने युग प्रवर्तक गुरु के रूप में काशी प्रांत में चारों दिशाओं में अपने अष्टछाप शिक्षकों को लेकर आज से लगभग 100 साल पहले जन जागरण किया था। इसी संदर्भ में पूर्वांचल के प्रयाग से लगाए बलिया तक बनारस मिर्जापुर, जौनपुर, चंदौली, आजमगढ़ के सुप्रसिद्ध लोक गायकों का आयोजन काशी के रसिक जनों के लिए तथा कला संस्कृति संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

प्रस्तुति करने वाले नामचीन कलाकारों में अंतराष्ट्रीय लोक गायक डॉ मन्नू यादव संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली और संगीत नाटक अकादमी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित तथा आधा दर्जन देशों में बनारस की संस्कृति का परचम फहरा चुके हैं। वहीं बलिया के परशुराम सिंह बिरहा के माध्यम से संगीत नाटक अकादमी उत्तर प्रदेश द्वारा अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। वहीं चंदौली के मंगल कवि जाने-माने लोग गायक व संगीत नाटक अकादमी उत्तर प्रदेश से सम्मानित लोक कवि  हैं। जौनपुर के अशोक कुमार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार वर्ष 2019 से सम्मानित कलाकार हैं। इसके साथ-साथ आजमगढ़ से लालता प्रसाद, मीरजापुर से बबलू बावरा, प्रयागराज से अभय राज यादव, दिनेश कुमार की प्रस्तुतियां होंगी। इस आशय की सूचना कला एवं जनजाति कला संस्कृत संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने दी है।

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