“बेमिसाल नीरज : कारवां गुजर गया

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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक, महाकवि गीतों के दरवेश, पद्मभूषण (डॉ०) गोपाल दास नीरज जी की 97वीं जयंती की पूर्व संध्या पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में  03 जनवरी सोमवार  सायं 05:30 बजे से “सी एम एस ऑडिटोरियम,  लखनऊ में काव्यांजलि कार्यक्रम आयोजित

लखनऊ, हेल्प यू  एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक, महाकवि गीतों के दरवेश पद्मभूषण (डॉ०) गोपाल दास नीरज जी की 97वीं जयंती की पूर्व संध्या पर साहित्यिक कार्यक्रम “बेमिसाल नीरज : कारवाँ गुज़र गया” काव्यांजलि का आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने सीएमएस ऑडिटोरियम, गोमती नगर में किया गया l

हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का कार्यक्रम आयोजन में सहयोग प्रदान करने हेतु धन्यवाद देते ए, अपने स्वागत सम्बोधन में कहा कि, हम सब बड़े खुशनसीब हैं कि कोरोना महामारी के बाद हम सब जीवित हैं और आज नीरज जी की जन्मजयंती कार्यक्रम में यहाँ उपस्थित हैं, परन्तु आगे जीवित रहने के लिए हम सबको कोरोना प्रोटोकाल का ईमानदारी से पालन करते रहना है l

उन्होंने नीरज जी को याद करते हुए कहा कि – 

नीरज को पढ़कर आदमी बनता अदीब है,

नीरज को जिसने देखा बड़ा खुशनसीब है

श्री अग्रवाल ने बताया कि ट्रस्ट ने अपने पूर्व संरक्षक नीरज जी का 90वें जन्मदिन से 93वें जन्मदिन को इतने भव्य रूप में मनाया कि नीरज जी कहते थे कि ट्रस्ट ने मेरी उम्र बढ़ा दी है l परन्तु विगत दो वर्षों से कोरोना काल के कारण नीरज जी की जयंती पर किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जा सका है l वर्ष 2014 से नीरज जी के जीवित रहने तक, ट्रस्ट को नीरज जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, जिससे ट्रस्ट ने समाज, साहित्य, आध्यात्म, संस्कृति के क्षेत्र में भव्य आयोजन किये तथा जनहित में अनेकों पुस्तकों का प्रकाशन किया l नीरज जी कहते थे कि हेल्प यू ट्रस्ट अपने नाम को सार्थक कर रहा है l

श्री अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में यह भी बताया कि, नीरज जी कहते थे कि मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य है l इसी भावना से आज ट्रस्ट कवि सम्मलेन का आयोजन तथा 05 नवोदित गीतिकारों को पद्मभूषण (डॉ०) गोपाल दास ‘नीरज’ स्मृति “गीत सम्मान” से सम्मानित कर रहा है l

कार्यक्रम में पद्मभूषण (डॉ०) गोपाल दास ‘नीरज’ स्मृति गीत सम्मान से 05 कवियों श्री अखण्ड प्रताप सिंह (लखनऊ), सुश्री रेनू द्धिवेदी (लखनऊ), श्री रामायण धर द्धिवेदी (बस्ती), श्री आशीष शर्मा (लखीमपुर खीरी) तथा श्री योगी योगेश शुक्ला (लखनऊ) को उत्कृष्ट गीत रचनाधर्मिता के लिए नवोदित गीतकार के रूप में पद्मभूषण (डॉ०) गोपाल दास ‘नीरज’ स्मृति “गीत सम्मान” से सम्मानित किया गया I

इस अवसर पर कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ जिसमें, श्री सत्येंद्र ‘शलभ’, डॉ. सुमन दुबे, डॉ. कलीम क़ैसर, डॉ. कमलेश शर्मा, डॉ. सरला शर्मा, सुश्री नुसरत अतीक़, सुश्री सुफलता त्रिपाठी तथा डॉ. अखिलेश मिश्रा ने अपनी कवितायेँ सुनाईं l

श्री सत्येंद्र शलभ’ जी :

“पक्की सड़क अचानक कच्ची होकर बोली, गांव आ गया l

प्राणों प्यारा गांव आ गया, प्यारा-प्यारा गांव आ गया ll

चुए हुए महुए को चूमे पुरवा डोली , गांव आ गया l

प्राणों प्यारा गांव आ गया, प्यारा-प्यारा गांव आ गया ll”

डॉ. अखिलेश मिश्रा जी :

“तुम अटल विश्वास हो, छल हो, बता दो,

प्रेयसी किस पुण्य का फल हो बता दो,

तुम  अधर पर प्यास सी हो,

रति निपुण मधुमास सी हो,

रूपसी मदिरा का मद हो,

वृंदावन के रास सी हो,

मुझ में तुम पलभर या प्रतिपल हो, बता दो,

प्रेयसी किस पुण्य का फल हो बता दो”

डॉ. सुमन दुबे जी :

“कौन कहता है की पांव की जंजीर हूँ मैं,

दौरे हाज़िर की बदलती हुई तस्वीर हूँ मैं I

मैं हूँ औरत मेरी फितरत है मोहब्बत करना,

माँ कहीं हूँ, कहीं बेटी, कहीं हमशीर हूँ मैं I”

डॉ. कमलेश शर्मा जी :

“हम उनसे अपना क्रोध जता पूछ रहे हैं,

अब तक हुई है किस से खता पूछ रहे हैं,

न जाने कौन से महल में क़ैद पड़ी जो,

हम उस स्वतंत्रता का पता पूछ रहे हैं l”

डॉ. कलीम क़ैसर जी :

“जनवरी से न जून से मतलब,

प्यार को है जुनून से मतलब,

नाम रिश्तों का चाहे जो रख लो,

दिल को तो है सुकून से मतलब ।“

डॉ. सरला शर्मा जी :

“बड़ी दुश्वारियों के बाद आसानी में रहती हूँ,

चमन में भी मैं कांटों की निगहबानी में रहती हूँ,

मुझे जख़्मों के ख़ंजर से निपटना ख़ूब आता है,

मैं अपने हौसले हिम्मत की सुल्तानी में रहती हूँ I”

सुश्री नुसरत अतीक़ जी :

“वो तो आँखों में ख्वाब छोड़ गया,

अब तो नींदों की जिम्मेदारी है,

रूह पर इसका बस नहीं चलता,

मौत तो जिस्म की शिकारी है I”

सुश्री सुफलता त्रिपाठी जी :

“खुशबुओं की डगर से गुजरने लगे,

आपसे प्यार हम जबसे करने लगे,

हमने दर्पण न देखा कभी कल तलक,

आज छुप छुप के सजने सँवरने लगे I”

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