प्रयागराज। [मनोज पांडेय ] साधू-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की खुदकुशी के दस महीने बीतने के बाद भी बाघम्बरी मठ में स्थित उनका कमरा अभी तक नहीं खुल सका है। मठ से जुड़े हुए लोग कमरा खुलवाने के लिए पुलिस से लेकर सीबीआई और अदालत तक का दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन कोई भी इस मामले में दखल देने को कतई तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिरकार ब्रह्मलीन हो चुके महंत नरेंद्र गिरि का कमरा कैसे खुलेगा। दिवंगत महंत के अनुयायी अब इस मामले को हाईकोर्ट ले जाने की तैयारी में हैं।
दरअसल अखाडा परिषद के पूर्व अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि प्रयागराज के अल्लापुर मोहल्ले में स्थित बाघम्बरी गद्दी मठ में रहते थे। पिछले साल बीस सितम्बर को उनका शव मठ के ही एक कमरे में फंदे से लटकता हुआ पाया गया था। इस मामले में यूपी पुलिस ने केस दर्ज कर तफ्तीश शुरू की थी, लेकिन दो दिन बाद ही मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में महंत की संदिग्ध मौत को खुदकुशी बताते हुए चार्जशीट दाखिल की थी। खुदकुशी के लिए मजबूर करने के आरोप में उनके शिष्य रहे आनंद गिरि के साथ ही हनुमान मंदिर के पूर्व पुजारी आद्या प्रसाद व उसके बेटे संदीप को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। सभी आरोपी अभी जेल में ही हैं।
महंत नरेंद्र गिरि का शव मिलने के बाद प्रयागराज पुलिस ने बाघम्बरी मठ के दो कमरों को सील कर दिया था। इसमें पहला वह कमरा था, जिसमे महंत नरेंद्र गिरि ने सुसाइड किया था, जबकि दूसरे कमरे में वह रहा करते थे। मठ में ये कमरा यहां के महंत का होता है। सीबीआई ने जब इस केस में अपनी जांच पूरी कर ली तो महंत नरेंद्र गिरि के उत्तराधिकारी और मौजूदा महंत बलबीर गिरि ने कमरे को खुलवाने के लिए पुलिस से संपर्क किया। मठ की तरफ से दलील यह दी गई कि जांच ख़त्म हो चुकी है, ऐसे में कमरों को खोलने का आदेश दिया जाए। खासकर उस कमरे को, जिसमे महंत नरेंद्र गिरि रहा करते थे और घटना से उस कमरे का कोई लेना देना भी नहीं है। लेकिन पुलिस ने ये कहकर इनकार कर दिया कि ये मामला सीबीआई को ट्रांसफर हो गया था।
दूसरी तरफ सीबीआई ने ये कहते हुए पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया है कि उसने कमरे को सील नहीं किया था। उसकी जांच भी पूरी हो चुकी है। मामला अब कोर्ट में है, इसलिए वह कोई दखल नहीं देगी। प्रशासनिक अफसरों की तरफ से भी आदेश देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई और पल्ला झाड़ लिया गया। कहीं से भी रिस्पांस नहीं मिलने पर मठ के महंत बलबीर गिरि की तरफ से डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई लेकिन कोर्ट ने भी ये कहते हुए अर्जी को खारिज कर दिया कि उसने कमरे को बंद रखने का कोई आदेश नहीं दिया था। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से अर्जी खारिज होने के बाद मठ से जुड़े हुए लोग अब ये नहीं तय कर पा रहे हैं कि आख़िरकार इस बारे में उन्हें अनुमति कौन देगा।
मठ से जुड़े हुए वकील ऋषि शंकर द्विवेदी के मुताबिक़ इस मामले में अब हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल किये जाने की तैयारी की जा रही है। उनका कहना है कि बाघम्बरी मठ मौरुषि ट्रस्ट के तहत है। ये एक प्राइवेट प्रॉपर्टी है। बिना किसी ठोस आधार के इसे सील करने का अधिकार किसी को नहीं है। उनके मुताबिक़ बंद कमरा न सिर्फ मठ के महंत का होता है, बल्कि मौजूदा महंत बलबीर गिरि के दिवंगत गुरु महंत नरेंद्र गिरि से जुडी तमाम ऐसी चीजें उस कमरे में होंगी, जिन्हे संजोकर उनका संरक्षण किया जाना बेहद ज़रूरी है।
इस बारे में मठ के महंत बलबीर गिरि का कहना है कि मठ के कण-कण में उनके गुरु ब्रह्मलीन नरेंद्र गिरि की यादें जुडी हुई हैं। वह उनसे जुडी हुई चीजों को संभलकर रखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि गुरु का शरीर भले ही पास न हो, लेकिन उनका आशीर्वाद हमेशा उन्हें मिलता रहे। मठ के जिन भी हिस्सों से गुरु का सीधा जुड़ाव हुआ करता था, वहां नियमित पूजा अर्चना होनी चाहिए। कहा जा सकता है कि महंत नरेंद्र गिरि जब तक जीवित थे, तब तक उनके बाघम्बरी मठ में सिस्टम से जुड़े हुए लोगों का जमावड़ा लगा रहता था लेकिन सिस्टम में बैठे वही लोग आज उनके मामले में दखल देने को तैयार नहीं है।