कोविड-19 महामारी के बाद के वर्षों में हम तकनीकी इतिहास की सर्वाधिक परिवर्तनकारी क्रांतियों में से एक : उपयोगी, सार्वभौमिक और असीमित कृत्रिम आसूचना (एआई) के उदय के साक्षी बने। इस नए एआई युग से उत्पन्न होने वाली प्रौद्योगिकी, अवसंरचना और आर्थिक अवसरों को सुरक्षित करने की दिशा में वैश्विक स्तर पर दौड़ जारी है। जिस तरह एआई उद्योगों में परिवर्तन और हमारे दैनिक जीवन में क्रांति लाना जारी रखे हुए है, उसी तरह, बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उपयोग करने वाली (यानी एनर्जी –इंटेंसिव) एआई प्रोसेसिंग की मांग बढ़ती जा रही है। अपने प्रचुर नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों और बढ़ते एआई इकोसिस्टम के साथ भारत, एआई प्रोसेसिंग को शक्ति प्रदान करने के लिए हरित ऊर्जा का उपयोग करने की दिशा में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में है।
एआई प्रोसेसिंग के लिए ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। अनुमान है कि एक एआई मॉडल के प्रशिक्षण में डेटा सेंटर में 284,000 किलोवाट-घंटा (केडब्ल्यूएच) तक बिजली की खपत हो सकती है। एक सिंगल चैट जीपीटी क्वेरी किसी सामान्य गूगल सर्च की तुलना में लगभग दस गुना ज़्यादा ऊर्जा और एक घंटे के लिए पांच-वाट के एलईडी बल्ब को चलाने में खर्च होने वाली ऊर्जा जितनी मात्रा में ऊर्जा का उपयोग करती है। इसके अलावा, अकेले डेटा सेंटर बिजली की वैश्विक मांग के 1 प्रतिशत के लिए उत्तरदायी हैं, जो स्थायी ऊर्जा समाधानों की आवश्यकता पर जोर देता है। एआई कंप्यूटिंग के लिए ऊर्जा की ज़रूरते बड़े पैमाने के डेटा सेंटरों की तत्काल स्थापना किए जाने को आवश्यक बनाती हैं, जिन्हें हाइपर-स्केल डेटा सेंटर के रूप में जाना जाता है। ये नए हाइपर-स्केल डेटा सेंटर इतने पैमाने और गति पर विश्वसनीय ग्रीन पावर की मांग करते हैं, जिसे प्राप्त करने के लिए कई क्षेत्र संघर्ष करते हैं। साल 2030 तक ग्लोबल डेटा सेंटर की ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों के 4,000 टीडब्ल्यूएच तक पहुंचने का अनुमान है, जो बिजली की वैश्विक मांग का 5 प्रतिशत होगी।
नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों में निर्माण और स्टार्टअप के लिए टाइमलाइन काफी तीव्र होती है, ऐसा मानकीकृत इकाइयों या खंडों के उपयोग वाले उनके मॉड्यूलर डिज़ाइनों की बदौलत होता है। हालांकि, अनेक क्षेत्रों के लिए इन संयंत्रों के तेज़ निर्माण के साथ तालमेल बैठा पाना, खासकर ग्राहकों को बिजली पहुंचाने के लिए पर्याप्त ट्रांसमिशन लाइनें सुनिश्चित कर पाना मुश्किल होता है। भारत ने साल 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत बिजली गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। हर साल 300 से ज़्यादा दिन धूप और तेज़ हवा की गति सहित भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं मौजूद है, जिनका उपयोग एआई प्रोसेसिंग में सहायता देने के लिए किया जा सकता है।
भारत की असली ताकत निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में स्थानीय ग्रीन एनर्जी लीडर्स से आती है, जो बड़े पैमाने पर विश्व स्तरीय ऊर्जा परियोजनाओं को लागू कर सकते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग को एक आधुनिक राष्ट्रीय ग्रिड और एक प्रभावी नियामक ढांचे का समर्थन प्राप्त है। साथ ही, देश में 1,000 से अधिक एआई स्टार्टअप के साथ भारत का एआई इकोसिस्टम तेजी से बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त, वैश्विक एआई प्रतिभा का 20 प्रतिशत भारत में मौजूद है, जो इसे एआई कंपनियों के लिए एक आकर्षक स्थान बनाता है। डिजिटल सेवाओं, ई-कॉमर्स और क्लाउड कंप्यूटिंग की बढ़ती मांग से प्रेरित होकर भारत में एआई बाजार के साल 2025 तक 7.8 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
डिजिटल सेवाओं, ई-कॉमर्स और क्लाउड कंप्यूटिंग की बढ़ती मांग के कारण भारत का डेटा सेंटर बाजार तेजी से बढ़ रहा है। मार्केट्स एंड मार्केट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 तक बाजार की स्थापित क्षमता 1,432 मेगावाट तक पहुंचने की संभावना है, जो 21.1 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। साल 2030 तक, इसके 15.6 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ 3,243 मेगावाट तक पहुंचने का अनुमान है। फाइनेंशियल टाइम्स में हाल ही में छपे एक लेख से पता चलता है कि भारत हाइपर-स्केल डेटा सेंटरों के नेतृत्व में एशिया प्रशांत क्षेत्र का शीर्ष डेटा सेंटर बाजार बन जाएगा।
डेटा सेंटर की कुछ खास ज़रूरतें होती हैं, जो उन्हें अन्य ढांचागत परियोजनाओें से अलग करती हैं। उन्हें विश्वसनीयता, सुरक्षा, मॉड्यूलरिटी और बहुतायत या रिडंडेंसी के उच्च मानकों के लिए डिज़ाइन किया गया है। उनकी सफलता के लिए बैकअप पावर का होना ज़रूरी है। यद्यपि डीजल जनरेटर वर्तमान में इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य बैकअप तकनीक है,लेकिन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा बैटरी (6 घंटे का बैकअप प्रदान करते हुए) और हाइड्रोजन ईंधन सेल (48 घंटे का बैकअप प्रदान करते हुए) जैसे हरित विकल्पों के संबंध में अन्वेषण किया जा रहा है। हाइपर-स्केल डेटा सेंटर के विस्तार के लिए पानी की उपलब्धता एक चुनौती है, इसलिए उप-उत्पाद के रूप में पानी का उत्पादन करने वाली फ्यूल सेल जैसी तकनीकों को एकीकृत करना एक आशाजनक समाधान हो सकता है।
हैदराबाद में गूगल का एआई -संचालित डेटा सेंटर 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा पर काम करता है, जो संधारणीय एआई प्रोसेसिंग के लिए एक मिसाल कायम करता है। पुणे में माइक्रोसॉफ्ट का एआई -संचालित डेटा सेंटर अपनी ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करता है, जो एआई में हरित ऊर्जा की संभावनाओं को रेखांकित करता है। इसके अतिरिक्त, भारत सरकार की “मेक इन इंडिया” पहल इस क्षेत्र में विकास के लिए सहायक ढांचा प्रदान करते हुए हरित डेटा सेंटरों और एआई अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देती है।
एआई डेटा सेंटर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए भारत को नेट-जीरो हाइपर स्केल डेटा सेंटरों के लिए नीति निरुपित किए जाने की आवश्यकता है। इसका आशय है कि ऐसे विशाल डेटा सेंटर बनाए जाने चाहिए, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान नहीं देते हों। देश को ऐसे प्रमुख स्थानों की पहचान करनी चाहिए, जो विश्वसनीय बैकअप ऊर्जा विकल्पों के साथ-साथ निरंतर हरित बिजली प्रदान कर सकें। इसके अतिरिक्त, भारत को कुशल श्रमिकों को आकर्षित और तैयार करने की आवश्यकता है, जो अत्यधिक सुरक्षित और कुशल उन्नत डेटा सेंटरों का निर्माण कर सकें।
नवाचार को बढ़ावा देने के लिए सरकार को पायलट परियोजनाओं का वित्त पोषण करना चाहिए, ताकि ऊर्जा और पानी का कम उपयोग करने वाले डेटा सेंटर स्थापित करने के तरीके तलाशे जा सकें। भारत के लिए यह भी आवश्यक है कि वह प्रभावी नीतियों और विनियमों को लागू करके डेटा सुरक्षा के संबंध में वैश्विक स्तर पर विश्वास कायम करे।
स्वच्छ ऊर्जा और बढ़ते एआई इकोसिस्टम में अपनी ताकत के साथ, भारत हरित ऊर्जा-संचालित एआई प्रोसेसिंग में अग्रणी बनने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में है। अपने नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का लाभ उठाकर और एआई डेटा सेंटरों के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटकर भारत अपने कार्बन फुटप्रिंटस में कमी ला सकता है, टिकाऊ व्यवसाय और नवाचार के केंद्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा सकता है तथा स्वच्छ ऊर्जा और एआई क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन कर सकता है।