“मेरी खामोशी को अब कोई ना नाम दो…”

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प्यार किया है तुमसे कोई इल्जाम ना दो ।मेरी खामोशी को अब कोई नाम ना दो ।।
          दुनिया यूं ही भरमाएगी !       

  चोट खाकर मुस्कुराएगी !!
मेरी प्यार की गहराई को नापकर देखो ,पत्थर का कसूर आईने को इल्जाम ना दो ।
       खुशियां ख्वाहिशें इश्क़ ख़ास !   

  ऐसे में यक एक सुनहरा सांझ !!
दिल जलकर राख हो रहा प्रेम बस्ती में ,इश्क़ ए शोले है धुआं को इल्जाम ना दो ।
         मुझे यूं ही भुला न पाओगे !     

   राहों में यूं सुला न पाओगे !!
ऐसा ना हो हमारे इश्क़ के अवशेष ना रहे ,धुआं धुआं हो जाए उससे पहले कोई नाम दो ।
प्यार किया है तुमसे कोई इल्जाम ना दो ।मेरी खामोशी को अब कोई नाम ना दो ।।
मनोज शाह ‘मानस’

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