बबुरी। अश्विन कृष्ण अष्टमी पर महिलाएं सन्तान की लंबी उम्र और सौभाग्य प्राप्ति के लिए निर्जल व्रत रखकर रविवार की शाम एकत्रित होकर श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना की। इस व्रत को जितिया या जीउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जानते हैं। पंडित पद्माकर चौबे ने बताया कि परम्पराओं के अनुसार इस व्रत को रखने वाली महिलाएं रात में सरगी खाकर व्रत का आरम्भ करती हैं। इसमें सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। सरगी में मिष्ठान आदि भी होता। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की कृष्ण अष्टमी को सुहागन स्त्रियां द्वारा जितिया व्रत रखा जाता है। मान्यता के अनुसार जितिया व्रत करने से संतान को सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि यह व्रत कठिन व्रतों में से एक हैं।
जितिया व्रत के अंतर्गत व्रती महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करतीं हैं। व्रत पारण के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात ही अन्न को ग्रहण करती हैं। जितिया व्रत का पारण प्रायः अगले दिन अर्थात नवमी तिथि को ही होता है। आपको बता दें कि इस बार कुल मिलाकर 35 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाएगा। धर्म के जानकारों का कहना है कि जितिया व्रत का उल्लेख महाभारत में मिलता है, दरअसल अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए साजिस रचते ङुए ब्रह्नास्त्र का इस्तेमाल किया था । उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया।गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। बाद में यह राजा परीक्षित के नाम से जाना गया।