दिल्ली उच्च न्यायालय: बलात्कार के मामले में समझौता करने के निचली अदालत के आदेश को लेकर उच्च न्यायालय ने जताई चिंता

Spread the love

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि बलात्कार के मामलों को अदालत के बाहर नहीं सुलझाया जा सकता, और निचली अदालत के उस फैसले पर चिंता जताई जिसमें मुद्दे के हल के लिए आरोपी एवं पीड़िता के बीच समझौते का कथित तौर पर सुझाव दिया गया था। न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने कहा कि यौन उत्पीड़न पीड़िता की गरिमा और अधिकारों को बरकरार रखना न्यायपालिका पर निर्भर है तथा सुलह के लिए इस तरह का प्रस्ताव न्यायाधीश की ओर से नहीं आना चाहिए, जो आपराधिक न्याय प्रणाली और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों के खिलाफ है।

कथित तौर पर न्यायाधीश के हस्तक्षेप के बाद दोनों पक्षों में समझौता होने के बाद, कथित बलात्कार को लेकर दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति शर्मा ने एक हालिया आदेश में कहा, ‘‘यदि यह सच है कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने आरोपी एवं पीड़िता को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दर्ज मामले में सुलह करने का सुझाव दिया और इसमें सहायता की, तो उक्त न्यायाधीश के व्यवहार को लेकर यह अदालत चिंता जताती है।’’ अदालत ने निर्देश दिया कि मौजूदा मामले की सुनवाई दूसरे न्यायाधीश को हस्तांतरित की जाए।

अभियोजक ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने पीड़िता की सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और उसके परिवार को जान से मारने की धमकी देकर उसे ब्लैकमेल किया तथा उसकी आपत्तिजनक तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की। समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करते हुए आरोपी ने कहा कि उसके और पीड़िता के बीच जो कुछ हुआ वह सहमति से हुआ था और वह मुआवजे के रूप में वह उसे 3.50 लाख रुपये अदा करेगा। 

अदालत ने कहा कि बलात्कार के आरोप को पीड़िता और आरोपी के बीच सुलह या समझौते के आधार पर तब तक रद्द नहीं किया जा सकता, जब तक कि कानून की प्रक्रिया के दुरूपयोग को प्रदर्शित करने वाली असाधारण परिस्थिति नहीं हो। अदालत ने कहा कि यदि समझौते की अनुमति दी जाती है तो अपराध करने वाले को यह संदेश जाएगा कि जघन्य कृत्य में पीड़िता को पैसे देकर बचा जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.