प्रवासी बंधुआ मजदूर जंतर मंतर पर लगा रहे है सामाजिक न्याय के लिए गुहार
जम्मू कश्मीर एवं छत्तीसगढ की सरकारें रही विफल, अब बंधुआ मजदूर बैठे दिल्ली में धरने पर
पिछले माह सितंबर, 2022 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा, सक्ति, बलोदा बाजार एवं सारंगढ़ जिले के 90 बंधुआ मजदूरों का मामला अखबार की सुर्खियों में चल रहा था फिर भी छत्तीसगढ़ सरकार ने बड़ी सफाई से बंधुआ मजदूरों को सामाजिक न्याय देने के बजाय उनको जम्मू कश्मीर के ईंट भट्टों से लाकर छत्तीसगढ के दूर दराज के गांवों में पटक दिया ताकि सरकार की किरकरी न हो। किंतु बंधुआ मजदूरों का सामाजिक न्याय के लिए चल रहा संघर्ष रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक प्रवासी बंधुआ मजदूरों ने गुहार लगाई किंतु पूरा एक माह बीत जाने के बाद भी मज़दूरों ने हार नही मानी। मुक्त हुए मजदूरों में से महिला मजदूर छत्तीसगढ़ के अपने गांव में ही आज भूख हड़ताल कर रही है वही पुरुष मजदूर दिल्ली के जंतर मंतर पर मुक्ति प्रमाण पत्र, बकाया मजदूरी एवं उचित पुनर्वास की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए है। अम्बे लाल नामक बंधुआ मजदूर ने धरने को संबोधित करते हुए बताया की मेरे जांजगीर चांपा जिले के कलेक्टर को मेने अपनी मजबूरी, गरीबी और गुलमगिरी का जिक्र किया तो कलेक्टर बोले तुम मरो मुझे क्या करना। तुम्हारे कर्म ऐसे ही लिखे है इसमें मैं क्या करू।
सुरेश नामक बंधुआ मजदूर ने बताया की जब हमारी शिकायत बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन कानून 1976 के तहत बड़गाम, जम्मू एवं कश्मीर के उपायुक्त के पास गई तो उपायुक्त बड़गाम ने कोई कानूनी प्रक्रिया नही अपनाई। इधर छत्तीसगढ सरकार से जो टीम हमे लेने आई उनके खुद के पसीने छूट रहे थे भला वो हमे क्या न्याय दिलाते। उल्टा हम आजाद होने के लिए कानूनी रूप से लड़ रहे थे और छत्तीसगढ की सरकार बड़गाम प्रशासन की जी हजूरी में लगी थी और हमे ही डराया धमकाया था की हमारे साथ चलो नही तो ये लोग तुम्हे गोली मार देंगे। छत्तीसगढ की सरकार आपका पुनर्वास कर देगी। जब सभी मजदूर छत्तीसगढ आ गए तो सरकारी अधिकारी हमे रेलवे स्टेशन पर ही छोड़कर भाग गए।
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बॉन्डेड लेबर के कन्वेनर निर्मल गोराना अग्नि ने कहा है कि जम्मू कश्मीर के बडगाम जिले के उपायुक्त रिलीज ऑर्डर देने से डर रहे है ताकि मजदूर कही किसी कोर्ट में ऑर्डर को चैलेंज न कर दे। किंतु आज मजदूरों ने जंतर मंतर पर आकर धरना देकर यह साबित कर दिया की सामाजिक न्याय के लिए वो लेडेंगे और अगला कदम सुप्रीम कोर्ट की तरफ बढ़ाएंगे। छत्तीसगढ की सरकार बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 के अंतर्गत मुक्त बंधुआ मजदूरों को कानूनी सहायता प्रदान करे ताकि जम्मू कश्मीर के बडगाम प्रशासन से रिलीज ऑर्डर मंगवाया जा सके और न्याय मिल सके। साथ ही 4 माह के वेतन का भुगतान सभी मजदूरों को करवाए। अगर बकाया वेतन मालिक नही दे पाता है तो सरकार मजदूरों को वेतन का भुगतान करे। इसी क्रम में निर्मल गोराना ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के द्वारा इस मामले में तत्परता न दिखाने को लेकर नाराजगी व्यक्त की है। निर्मल गोराना ने मानवाधिकार आयोग से यह जवाब मांगा है कि वो कौन कौन से साक्ष्य है जिसके आधार पर प्रशासन से लेकर छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्यमंत्री तक प्रवासी बंधुआ मजदूरों के मामले में मौन है। बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास को लेकर छत्तीसगढ सरकार पोर्टल पर कोई आंकड़ा क्यों नही पेश कर रही है। आगे निर्मल गोराना ने बताया की आज एक मेमोरेंडम भी प्रधानमंत्री कार्यालय एवं श्रम मंत्री को दिया गया और संगठन इस लड़ाई को जब तक न्याय नही मिलेगा तक जारी रखेगा। बंधुआ मजदूर टेकराम ने बताया की महिला बंधुआ मजदूरों के साथ ईंट भट्टे में हुए लैंगिक हमले को लेकर जम्मू एवं छत्तीसगढ़ सरकार पहल नहीं कर रही है जो अत्यंत शर्मनाक और निंदनीय है।