वन अधिकार अधिनियम के बेहतर क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी राज्य : प्रमुख सचिव

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वन अधिकार प्रबंधन में यह कार्यशाला मील का पत्थर साबित होगी ,वन अधिकारों की मान्यता, प्रबंधन एवं संरक्षण तथा अभिसरण से आजीविका संवर्धन सहित विभिन्न विषयों पर हुई परिचर्चा
रायपुर, / धरती आबा-जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के वन अधिकार अधिनियम 2006 के बेहतर क्रियान्वयन विषय पर आज राजधानी रायपुर में एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न हुई। कार्यशाला को संबोधित करते हुए आदिम जाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास विभाग के प्रमुख सचिव श्री सोनमणि बोरा ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य वन अधिकार अधिनियम 2006 के बेहतर क्रियान्वयन में देश में एक अग्रणी राज्य है।

आज की कार्यशाला एक शुरुआत है इस कार्यशाला के माध्यम से वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में मैदानी स्तर पर आ रही परेशानियों को दूर करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम एवं पेसा एक्ट के बेहतर क्रियान्वयन हेतु एक टॉस्क फोर्स के गठन का प्रस्ताव विचाराधीन है इसके माध्यम से ऐक्ट के प्रावधानों को बेहतर ढंग से लागू किया जा सकेगा।

प्रमुख सचिव श्री बोरा ने कहा कि राज्य में अब तक 4 लाख 79 हजार 502 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र तथा 4377 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं। इसके अलावा सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मान्य ग्राम सभाओं में सामुदायिक वन संसाधनों के प्रबंधन हेतु सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समिति के गठन की कार्यवाही की जा रही है। अब तक 2081 सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समितियों का गठन किया जा चुका है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से अब व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र धारकों की मृत्यु होने पर वारिसानों के नाम पर काबिज भूमि का नामांतरण एवं अन्य प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया है। अब तक नामांतरण, सीमांकन और त्रुटि सुधार से संबंधित 881 आवेदनों का निराकरण किया जा चुका है। इससे वंशानुगत रूप से वन भूमि के हस्तांतरण में आ रही कठिनाई को दूर करने में मदद मिली है।

कार्यशाला को संबोधित करते हुए आदिम जाति विभाग के आयुक्त पी.एस.एल्मा द्वारा वन अधिकार अधिनियम के बेहतर क्रियान्वयन हेतु राजस्व, वन, आदिम जाति तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को आपसी समन्वय स्थापित करते हुए समस्याओं को दूर करने पर बल दिया। चौपाल संस्था के गंगाराम पैकरा ने सामुदायिक वन संसाधन के दावों में त्रुटियों को दूर करने और एफआरए क्षेत्र में अनुभवी एनजीओ को मान्य करने का सुझाव दिया। एटीआरईई संस्था से शरद लेले ने कहा कि सामुदायिक वन संसाधन अधिकार देने में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी राज्य बन गया है। परन्तु केवल सीएफआरआर दावें देना ही काफी नहीं है, अब हमें इसके आगे के चरण पर कर्य करने की जरूरत है।

आदिम जाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास विभाग के मुख्य तत्वाधान में यह कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें सहयोगी संस्थान के रूप में टीआरटीआई, एफईएस (फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी) एवं एटीआरईई (अशोका ट्रस्ट फॉर इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट) द्वारा भागीदारी की गई। यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) द्वारा इसे तकनीकी सहयोग प्रदान किया गया। कार्यशाला में प्रदेश के अपर संचालक संजय गौड़ सहित जिलों में पदस्थ सहायक आयुक्त, जिला परियोजना समन्वयक, स्वयं सेवी संस्थाओं और सामुदायिक वनप्रबंधन समिति के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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