चहनियॉ चंदौली । क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में मुख्य रूप से , बलुआ मथेला,तिरगावां,टांडा,निधौरा,बड़गाँवा, बैराठ,रईया,काँवर आदि घाटों पर छठ पूजा की ब्रती महिलाओ ने नहाय खाय के साथ ब्रत की शुरुआत की ,पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ पूजा का आदिकाल से विशेष महत्व रहा है. यहां तक कि महाभारत में भी इसका उल्लेख है. पांडवों की मां कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई, जिनका नाम था कर्ण. इसी तरह पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी कष्ट दूर करने के लिए छठ पूजा की थी. माना जाता है कि ये व्रत संतान प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए रखा जाता है.
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक चलता है. प्रथम दिन यानी चतुर्थी तिथि ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाई जाती है. छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इस दिन व्रत करने वाले स्नान करके नए कपड़े धारण करते हैं और पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं. इस दिन सबसे पहले व्रत रखने वाले भोजन करते हैं. उसके बाद परिवार के बाकी सदस्य भोजन करते हैं. अगले दिन पंचमी को खरना व्रत होता है. इस दिन संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड़-खीर, रोटी और फल आदि खाते हैं. फिर अगले 36 घंटे निर्जला व्रत रखते हैं. मान्यता है कि खरना पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होकर घर में वास करती हैं. छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी पर नदी या जलाशय के तट पर भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं. उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं.