बिस्मिल्लाह खां जयंती: काशी के शहर में यादों की जयंती

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बिस्मिल्लाह, काशी के शहर में यादों की जयंती है। वहाँ के मंदिरों के घंटों की मिठास और सौंदर्य को अमेरिका तक ले जाने का सपना उन्होंने देखा था। उनके बोल अमेरिकी विचारकों को प्रेरित करते हैं कि वे इस प्राचीन भारतीय शहर के ध्वनि और सांस्कृतिक धारा को अपनी जिज्ञासा के माध्यम से समझें। बिस्मिल्लाह ने कहा था, “काशी की मंदिरों के घंटों की आवाज को दुनिया भर में सुना जाना चाहिए।” इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने अपनी कल्पना और संघर्ष की प्रेरणा दी।

बिस्मिल्लाह खां, जिन्हें शहनाई के बादशाह के रूप में जाना जाता है, एक अद्वितीय संगीतकार और कलाकार थे। उन्होंने अपनी शानदार संगीत की प्रतिष्ठा दुनियाभर में हासिल की थी। उनका जन्म 11 दिसम्बर 1916 को बनारस में हुआ था।

बिस्मिल्लाह खां का बचपन संगीत के साथ ही बीता। उनके पिता और दादा भी संगीतकार थे, और उन्होंने उन्हें संगीत की शिक्षा दी। उन्होंने बाद में भारतीय संगीत महाविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की।

बिस्मिल्लाह खां का संगीत में जुनून था। उनका शहनाई पर नियंत्रण और माहिरी अनदेखी नहीं थी। उनकी शहनाई के मेलोडियस स्वर सुनकर लोगों के दिलों में अदभुत भावनाएं उत्पन्न होती थीं।

बिस्मिल्लाह खां की संगीतकारी को दुनिया भर में मान्यता मिली। उन्हें ‘संगीत रत्न’ सम्मानित किया गया और उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।

बिस्मिल्लाह खां का अमेरिका में रहने का ऑफर मिला था, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें अमेरिका में कैसे लाएंगे बनारस के मंदिरों के घंटों की आवाज और गंगा। उन्होंने हमेशा अपने गांव और भारतीय संस्कृति के प्रति अपना वफादारी दिखाया।

बिस्मिल्लाह खां की 108वीं जयंती पर, हम उनके योगदान को सम्मानित करते हैं और उनके संगीत की महिमा को याद करते हैं। उनका संगीत हमेशा हमारे दिलों में बसा रहेगा।

बनारस के मंदिरों के घंटों की आवाज और गंगा की अविरल प्रवाह – ये दोनों ही वास्तव में उनकी अद्वितीयता को स्पष्ट करते हैं। यह न केवल बनारस की परंपरा और धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि यह स्थान भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर को भी प्रतिनिधित्व करता है। बनारस की धारा गंगा, जो नहीं सिर्फ एक नदी है, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धारा है, जो लाखों लोगों के लिए पवित्रता का प्रतीक है।

बिस्मिल्लाह खां ने अपनी उस्तादी में अमेरिका में अपना एहसास जताया, जब उन्होंने वहां के एंबेसडर को बनारस के आत्मीय संगीत और आध्यात्मिक वातावरण का महत्व बताया। उन्होंने यह प्रस्ताव दिया कि अमेरिका में भी उन्हें वही सुखद स्थिति दी जा सकती है, जो उन्हें बनारस में मिलती है। इस उत्कृष्ट संवाद ने अमेरिका के लोगों को भारतीय संस्कृति के महत्व को समझाया और इसे समर्थन भी किया। इस रूप में, बिस्मिल्लाह खां ने अपने कला के माध्यम से एक सांस्कृतिक दूत के रूप में कार्य किया, जो भारतीय संस्कृति की गहराई को दुनिया भर में प्रस्तुत किया।

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