बाराबंकी। बाबू भारतेंदु ने हिंदी साहित्य को परिष्कृत ही नहीं किया अपितु उस दौर की राजनीति में भी प्रतिरोध को दिशा दी। और साहित्य के माध्यम से सार्थक हस्तक्षेप किया।
उक्त विचार डॉ राम बहादुर मिश्रा अध्यक्ष अवध भारती संस्थान ने साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र के निर्वाण दिवस पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए दशहराबाग में व्यक्त किये।
संगोष्ठी में साहित्यकार समिति के अध्यक्ष डॉ विनयदास ने कहा कि भारतेन्दु जी का एक वाक्य वर्तमान में क्षेत्रीय बोलियों भाषाओं विभाषाओं के लिए मंत्र की तरह प्रयुक्त हो रहा है- “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल”।
साहित्यकार इकबाल राही ने कहा कि पूर्वजों ने जो दिशा दिखाई है हमें उससे हटने की जरूरत नहीं। बिना अपनी बोली भाषा में पारंगत हुए किसी भी तरह का विकास सिर्फ खोखला विकास ही सिद्ध होगा।
इस अवसर पर अवधी अध्ययन केंद्र उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रदीप सारंग ने कहा कि भारतेन्दु जी युगदृष्टा थे, उनके साहित्य ने दिशा विहीन समाज को दिशा दिखाया है।
अवध भारती संस्थान द्वारा आयोजित संगोष्ठी को कपड़ा बैंक प्रभारी गुलज़ार बानो, सामाजिक कार्यकर्ता रमेश चन्द्र रावत, उप सचिव अवधी अध्ययन केन्द्र अनुपम वर्मा, अध्यक्ष यूनिक सोशल वेलफेयर सोसाइटी पंकज कँवल ने भी संबोधित किया।