बबुरी -स्थानीय कस्बा स्थित पोखरे पर शिवकृपा श्री राम कथा समिति द्वारा आयोजित श्री राम कथा ज्ञान गंगा यज्ञ के 23 मई सोपान के चतुर्थ दिवस चित्रकूट से पधारी मानस मर्मज्ञ मानस मढ़ी साध्वी नीलम गायत्री जी व्यासपीठ से भगवत भक्त रसिक श्रोताओं को श्री राम के बारे में बताया।।राम जन्म जग मंगल हेतु।।
उन्होंने बताया कि ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु शतरूपा ने अपने चौथे पन्ने हरि को पाने की इच्छा से वन गमन किया तथा कठोर सब करने लगे। 23000 वर्षों के कठोर तपस्या के फलस्वरूप ब्रह्म वाणी हुई और महाराज मनु और शतरूपा से कहा कि वर मांगी है सब महाराज मनु ने कहा पहले आप सामने आई पुनः ब्रह्म वाणी ने कहा मेरा कोई रूप नहीं है हमारे भक्त हमें जिस रुप में चाहते हैं हम उनके सामने उसी रूप में प्रकट होते हैं आप बताइए आप हमें किस रूप में चाहते हैं तब मनु जी ने कहा कि आप हमें उस स्वरूप में दर्शन दीजिए जो स्वरूप शिवजी के अंतर्मन में बसता है जिसकी चर्चा का भुसुंडि जी करते हुए नहीं लगाते हैं आप उसी स्वरूप में दर्शन दीजिए सब प्रभु उनके सामने उसी रूप में प्रकट हो गए ।।नील सरोरुह नीलमणि नील निरधर श्याम। प्रभु का यह रूप देख कर दोनों लोगों ने हाथ जोड़कर उन्हें अपने पुत्र के रूप में प्राप्त करने की कामना की जब प्रभु अपने श्याम वर्ण रूप में प्रकट हुए हैं उनकी अलौकिक आभा देखते हुए किसी संत ने कहा तेरी मंद मंद मुस्कनिया पर बलिहार राघव जी।
कालांतर में यही मनु जी चक्रवर्ती राजा दशरथ बने और शतरूपा जी माता कौशल्या। महाराज दशरथ जी को चौथे पन में बड़ी चिंता हो अब हमारे बाद कूल में कोई नहीं है क्या कोई हमारे बाद यह कुल नहीं चलेगा, अपने इस चिंता के कारण को उन्होंने अपने गुरुदेव वशिष्ठ को बताया तब वशिष्ठ जी ने उनको सांत्वना देते हुए कहा कि धरहूं धीर होईयह सुत चारी। उसके बाद वशिष्ठ मुनि ने श्रृंगी ऋषि को बुलावा भेजा और पुत्र का मिष्टि यज्ञ कराया जिससे प्रसन्न हो अग्निदेव ने चरू(खीर) महाराज को दिया कहा कि इसे आप अपनी महारानी यों को दे दें महाराज दशरथ ने प्रेम पूर्वक चरू(खीर) ले उसको दो भागों में कर दिया प्रथम भाग को कौशल्या रानी को दिया और दूसरे में दो भाग कर कैकई और सुमित्रा को दिया लेकिन तभी आकाश में विचरण करते हुए एक चिलाई और सुमित्रा को दी गई प्रसाद को लेकर उड़ गई और माता अंजना के हाथ में दे दी। इधर जब कौशल्या माता ने देखा कि सुमित्रा के चुरू को चीन ले गई तो उन्होंने अपने प्रसाद से थोड़ा सा निकाल कर सुमित्रा को दिया और कैकई ने अपने प्रसाद से थोड़ा सा निकाल कर सुमित्रा को दिया तब सुमित्रा माता ने कहा कि यदि मुझे 2 पुत्र होते हैं तो एक माता कौशल्या के पुत्र के चरणों में समर्पित रहेगा और एक कैकेई के पुत्र के चरणों में समर्पित रहेगा। समय बीतने के साथ ही माताएं गर्व से हो गई शुभ लग्न मुहूर्त पर प्रभु का आगमन हुआ। प्रभु के जन्म होने के बाद जब व्यासपीठ से बधाइयां बजने लगी तो भगवत भक्त रसिक श्रोता उठकर नाचने लगे और राम जन्म का उत्सव मनाने लगे।