8 दिसंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन, जमीन और आजीविका से जुड़े अधिकारों की होगी मांग
नौगढ़। दलितों और आदिवासियों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए बनाए गए विशेष सब प्लान बजट में हो रही कटौती के खिलाफ आवाज तेज हो रही है। मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह इन योजनाओं का धन कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1 अगस्त को दिए गए एससी-एसटी उप-वर्गीकरण के फैसले के बाद इन समुदायों को बांटने की राजनीति बढ़ रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए 8 दिसंबर को दिल्ली में ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (एआईपीएफ) द्वारा एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। इसमें नौगढ़ से भी प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे।
नौगढ़ में हुई बैठक
नौगढ़ में एआईपीएफ तहसील इकाई की बैठक में प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जमीन का सवाल सीधे आजीविका और सम्मानजनक जीवन से जुड़ा है। सरकार को जंगलों और ग्राम सभा की उन जमीनों पर बसे गरीबों को पट्टा आवंटित करना चाहिए, ताकि वे स्थायी रूप से अपनी आजीविका चला सकें।
कपूर ने कहा कि नौगढ़ क्षेत्र में रोजगार की कमी के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। इसे रोकने के लिए कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना और सहकारी समितियों के माध्यम से फलदार वृक्षारोपण को बढ़ावा देना आवश्यक है। साथ ही, मनरेगा में मजदूरी ₹600 करने और सालभर काम की गारंटी की मांग की गई।
एससी-एसटी सब प्लान का दुरुपयोग
बैठक में कहा गया कि एससी-एसटी सब प्लान का पैसा ऐसे क्षेत्रों में लगाया जा रहा है जिनका दलित और आदिवासियों से सीधा संबंध नहीं है, जैसे नेशनल हाईवे, सेमीकंडक्टर, टेलीकॉम सेक्टर, कंप्यूटर चिप्स और सौर ऊर्जा। यह पैसा असल में कॉर्पोरेट घरानों को मुनाफा देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इस पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है।
मुख्य मांगें
1. दलितों और आदिवासियों को उनकी जमीन का अधिकार दिया जाए। 2. मनरेगा में मजदूरी ₹600 की जाए और सालभर काम मिले। 3. पलायन रोकने के लिए कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए। 4. एससी-एसटी सब प्लान का उपयोग केवल इन समुदायों के लिए हो।
बैठक में मौजूद लोग
बैठक में एआईपीएफ के राज्य कमेटी सदस्य अजय राय, मजदूर किसान मंच के जिला संयोजक रामेश्वर प्रसाद, तहसील प्रभारी रहमुद्दीन, पूर्व प्रधान नंदू राम, और कई अन्य कार्यकर्ताओं ने अपने विचार रखे। 8 दिसंबर का सम्मेलन इन सवालों को लेकर आंदोलन की दिशा तय करेगा।