शिव पार्वती विवाह की कथा सुन लोग हुए मंत्रमुग्ध… 

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राधा कृष्ण मन्दिर में चल रहे रामकथा का दूसरा दिन 

अहरौरा, मिर्जापुर / श्री राधा कृष्ण मंदिर में आयोजित श्री राम कथा के दुसरे दिन रविवार की शाम को कथा वाचक आचार्य संत शांतनु जी महाराज ने शिव पार्वती विवाह की कथा सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

दूसरे दिन कथा के यजमान  संजय भाई पटेल ने सपत्निक पूजन कर कथा का सुभारंभ कराया वही उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग के राज्य उपाध्यक्ष सोहन लाल श्री माली ने कथा  में पहुंचकर कथावाचक आचार्य संत श्री शांतनु जी महाराज का माल्यार्पण कर स्वागत किया । शांतनु जी महाराज ने श्री राम कथा के द्वितीय दिवस अपने मुखारविंद से कहा कि

 ‘एक बार त्रेता जुग माही, शंभु गए कुंभज रिषि पाई । 

संग सती संघ जग जननी भवानी ,पुजे रिषि अखिलेश्वर जानि ।।

एक बार भगवान भोलेनाथ स्वयं राम कथा सुनने के लिए सति को लेकर कुभज रिषी के पास  जाते हैं कथा सुनने के बाद शिव को पभू राम के दर्शन की अभिलाषा जागृत होती है ।भगवान शिव के मन में यह बात आई की  कही मेरी पोल ना खुल जाए कही रावण के मन में यह ना बात बैठ जाए की मेरे इष्ट किसको प्रणाम कर रहे हैं  इसलिए वह कथा सुनकर कुंभज रिषि को दक्षिणा देकर  बट वृक्ष के निचे बैठ जाते हैं ।

यह देख माता सती  ने प्रभू श्री राम को लेकर तर्क किया  और साक्षात ब्रम्ह होने के प्रमाण के लिए सम्मुख नकली  रूप माता जानकी का बनाया और  प्रभू श्री राम के पास गई लेकिन भगवान राम जान गये की माता पार्वती  जी खुद आई है । और प्रभू श्री राम ने कहा माता भगवान भोलेनाथ कहा है यह सुन माता पार्वती चल पड़ी कैलाश ।पार्वती को देख भगवान शिव ने कहा परीक्षा ले लिया  प्रभू श्री राम का इस पर माता ने कहा प्रभु मैंने कोई परिक्षा नही ली, पर्वती के बात से दुःखी होकर शिव जी ने अंत मन से ध्यान लगाया  तो माता सती की बातो से उनको दुःख पहुंचा क्यों की माता ने झूठ बोला था यह  देखकर शिव जी ने नाराज़गी जताई और  संकल्प ले लिया की अब हमारा तुम्हारा  मिलन इस शरीर से नहीं होगा और सत्तासी हजार वर्ष के लिए समाधि में लीन हो गए  । राजा दक्ष की कथा सुनाते हुए महाराज ने कहा की राजा दक्ष को पद  मिला  यज्ञ कराया जप कराया सभी को निमंत्रण मिला मगर अपने पुत्री सती और दमाद शिव को नहीं बुलाया ।  

 प्रजापति दक्ष के यज्ञ में  माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा पिता जी के यज्ञ में चलना है भगवान शिव ने कहा कोई निमंत्रण नहीं भेजा है आपके पिता ने  मगर  फिर  भी  माता पार्वती जी अपने पिता के यज्ञ में गई और वहा जाकर देखा तो सारे देवताओं सहित ब्रह्मा विष्णु सिंहासन लगा है मगर शिव जी को कोई स्थान नहीं है इस सती नाराज हो गई  और अपने दाहिने पैर के अंगुठे को पृथ्वी में दबा देती है और पृथ्वी में अपने आप को पति के सम्मान के लिए सति होने का निर्णय ले लिया जो चौरासी हजार  वर्ष तप के बाद पुनः माता पार्वती जी को भगवान शिव का वरदान प्राप्त हुआ ।  और माता पार्वती व भगवान शिव का विवाह हुआ संपन्न हुआ। इसके बाद पंडाल ऊं नमः शिवाय के  नारे से गूंज उठा । इस अवसर पर रामायण समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह, धीरज सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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