कजरी मानस ऋतु की शारीरिक, मानसिक अभिव्यक्ति है और हमारे लोकसंगीत का सुखद उत्स है-प्रो. मञ्जु सुन्दरम

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वाराणसी/ “काशी के माहात्म्य की अस्वीकृति धर्मजनित ज्ञान की स्वीकृति को नष्ट करती है और यह भी सत्य है कि यदि धार्मिक चेतना का प्रवाह बाधित हो गया हो तो काशी के समक्ष नतमस्तक हो जाने मात्र से ही यह चेतना पुनःजागृत हो जाती है। इसी चेतना की जागृति के लिये काशी की संगीत परम्परा एक अतुलनीय उपाय है और इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र का क्षेत्रीय केन्द्र, वाराणसी इसका संवाहक एवं संरक्षक है’’, यह कहना था कला केन्द्र काशी क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अभिजित् दीक्षित का। उपरोक्त व्याख्यान के अनुरूप, कला केन्द्र द्वारा भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् के विशेष सहयोग से अपने सभागार में दिनांक 13 अगस्त, 2024 को 03:00, अपराह्ण ‘क्षितिज’ शृंखला के अन्तर्गत लोककला की अनुपम विधा ‘कजरी गायन’ का आयोजन किया गया।  

कार्यक्रम की मुख्य गायिका डॉ. सुचरिता गुप्ता (प्रख्यात उपशास्त्रीय कला विदुषी, वाराणसी) थीं उनके साथ तबले पर संगत कर रहे थे पं. ललित कुमार तथा हारमोनियम पर थे डॉ. इन्द्रदेव चौधरी। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं, प्रो. मञ्जु सुन्दरम् (सम्मानित शास्त्रीय संगीतकला मर्मज्ञ, वाराणसी)।

तत्पश्चात् कला केन्द्र के निदेशक डॉ. अभिजित् दीक्षित ने स्वागत भाषण के दौरान उपस्थित श्रोता समूह से आगन्तुक कलाकारों का परिचय कराते हुये सभी आगंतुक कलाकारों एवं अध्यक्ष का स्वागत किया। इसके पश्चात् मुख्य अतिथि प्रो. मञ्जु सुन्दरम् ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा, ‘पावस ऋतु है और कजरी का गायन है, लोकगीत के स्वर भले ही परिमार्जित परिवर्धित रूप में मञ्च पर प्रस्तुत हो लेकिन उससे पहले वे रूहानी स्वर हैं जो जीवन को प्रकाशमान बनाते हैं, कजरी मानस ऋतु की शारीरिक, मानसिक अभिव्यक्ति है और हमारे लोकसंगीत का सुखद उत्स है।’ उन्होंने ऐसे आयोजनों के लिये कला केन्द्र को धन्यवाद देते हुये उपस्थित श्रोतासमूह से इस लोकरस का आनन्द लेने का आह्वान किया।

मुख्य गायिका डॉ. सुचरिता गुप्ता ने कार्यक्रम में मिर्जापुर की प्रसिद्ध कजरी में बनारसी रंग भरते हुये विशिष्ट रागों में संयोजित की, जिससे सभी श्रोता आनन्द विभोर हो गये। कार्यक्रम के उपरान्त डॉ. त्रिलोचन प्रधान ने उपस्थित कलाकारों तथा श्रोतासमूह के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. रजनीकांत त्रिपाठी। उक्त कार्यक्रम में प्रो. मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, प्रो. सुमन जैन, सुश्री सुमन जी, डॉ. ओमप्रकाश सिंह, संजय सिंह आदि अनेकानेक कलारसिकों के साथ ही बड़ी संख्या में संगीत मञ्चकला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधार्थी उपस्थित थे।

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