प्रो. सरोज शर्मा अध्यक्ष, एनआईओएस और डॉ. सुनीता जे. कथूरिया
सलाहकार (अनुसंधान एवं मूल्यांकन), एनआईओएस
बड़ी संख्या में बच्चे जो अपनी परीक्षाओं, विशेषकर बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, वे सभी अपने अकादमिक प्रदर्शन को लेकर चिंता और तनाव का अनुभव करते हैं। इसके कारण विभिन्न प्रकार की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं। बच्चे अक्सर माता-पिता और परिवार, शिक्षकों व स्कूल प्रणाली, सहपाठियों, मीडिया और बड़े पैमाने पर समुदाय की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव महसूस करते हैं। इसलिए, बच्चों को परीक्षा की चुनौतियों से उबरने में मदद करने के लिए सहायक तौर-तरीकों और अकादमिक अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। तनाव और चिंता का आकलन करने के लिए किए गए शोध अध्ययनों से पता चला है कि छात्र सिरदर्द, हृदय गति में वृद्धि, उच्च रक्तचाप, पेट दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन, पीठ दर्द, लगातार थकान, कब्ज, दस्त और नींद की गड़बड़ी सहित शारीरिक परेशानियों की शिकायत करते हैं। बोर्ड के छात्र तनाव और चिंता के प्रति संवेदनशील होते हैं क्योंकि वे शारीरिक व भावनात्मक परिवर्तन के महत्वपूर्ण दौर में होते हैं। इन अध्ययनों में उल्लेख किया गया है कि उत्तरोत्तर तनाव सीधे तौर पर मानसिक स्थिति से जुड़ा है और स्मरणशक्ति में भी कमी लाता है। ये गड़बड़ियां वर्षों तक बनी रह सकती हैं, जिनके कारण स्कूल तथा आगे चलकर कार्यस्थल में काम करते वक्त क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है।
शिक्षक व अभिभावक के लिए शांत होने और योजना बनाने की घड़ी
जब हम “परीक्षा तनाव” पर नज़र डालते हैं, तो हमें पता चलता है कि एक बच्चे के जीवन में दो सबसे महत्वपूर्ण लोग उनके माता-पिता और शिक्षक हैं।
मुक्त संचार, भावनात्मक समर्थन प्रदान करना, सकारात्मक मानसिकता को बढ़ावा देना, बच्चे की भावनाओं को मान्य करना, ट्रिगर की पहचान करना, विश्राम तकनीक सिखाना, शारीरिक गतिविधि और स्वस्थ आदतों को प्रोत्साहित करना, आश्वासन और पुन: आश्वासन प्रदान करना, तनाव प्रबंधन सिखाना तथा अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना, इसके कुछ कारगर उपाय हैं। अनिश्चितता को दूर करके और स्पष्ट अपेक्षाएं व अध्ययन सामग्री प्रदान करके, शिक्षक छात्रों को अधिक तत्पर तथा आत्मविश्वास महसूस करने में मदद कर सकते हैं। शिक्षक छात्रों को सूझ-बूझ और विश्राम तकनीकों का निर्देश देकर तनाव कम करने की रणनीतियों को पाठ्यक्रम में शामिल कर सकते हैं, ताकि वे कठिन दिनों में उनका अभ्यास कर सकें।
परीक्षा की चुनौतियों और तनाव पर काबू पाने में सहायता के लिए देखभाल एवं सहायक घरेलू माहौल भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसमें छात्र की भलाई और शैक्षणिक अपेक्षा के बीच एक बेहतर संतुलन बनाए रखते हुए सहायता, प्रेरणा और समझ प्रदान करना शामिल है। सचेत पालन-पोषण में आपके बच्चे का समर्थन करना, समझना और परीक्षा के दबावों व चुनौतियों से निपटने के दौरान उसके साथ रहना शामिल है।
“अपने बच्चे को यह समझाएं कि
परीक्षा में उनका प्रदर्शन चाहे जैसा भी हो,
आप हमेशा उनके साथ हैं” यह बहुत महत्वपूर्ण बात है।
अपने बच्चों को उनकी भावनाओं को व्यक्त करने और उनकी आलोचना किए बिना परीक्षा पर चर्चा करने की अनुमति दें। उन पर उत्कृष्टता की अत्यधिक मांग का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। उन्हें एक अध्ययन कार्यक्रम बनाने में मदद करें, जिसमें ब्रेक और डाउनटाइम शामिल हो। माता-पिता के रूप में उनका सहयोग करें, जैसे शांत परिवेश वाला अध्ययन स्थान, स्वस्थ नाश्ता और आवश्यक अध्ययन सामग्री। बच्चों को अपनी देखभाल करना और उन्हें विश्राम कौशल सिखाना जरूरी है, जैसे गहरी सांस लेने के व्यायाम, छोटी सैर और शांत संगीत। इसके अलावा यह भी जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए कोई नियम-कानून न लागू करें। उन्हें एक निश्चित मात्रा में स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के साथ अपने स्वयं के शेड्यूल और जिम्मेदारियों को संभालने की अनुमति दें। केवल अंतिम परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परीक्षा देने की प्रक्रिया में छोटी सफलताओं और महत्वपूर्ण पड़ावों का स्वागत करें।
“सिर्फ नतीजों का नहीं, प्रयासों का भी उत्सव मनाएं”
ऐसे दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करें जो सीखने और विकास को केवल उच्च ग्रेड प्राप्त करने से आगे रखता हो। जब भी बच्चे को कठिनाइयां हों, तो उन्हें उनकी पिछली सफलताओं और उपलब्धियों की याद दिलाएं तथा सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें। माता-पिता को अपने बच्चे की क्षमताओं पर विश्वास करना चाहिए।
परीक्षा तनाव को कम करने में अन्य हितधारकों की भूमिका
परीक्षा के दौरान बच्चों द्वारा अनुभव किए जाने वाले तनाव को दूर करने के लिए कई हितधारकों के बीच सहयोग आवश्यक है, जिनमें से प्रत्येक छात्रों की भलाई के समर्थन में एक अनूठी भूमिका होती है। छात्रों की सामान्य भलाई को बढ़ावा देने वाली प्रक्रियाएं और नीतियां विकसित करना स्कूल प्रशासकों की जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करने के अलावा कि शैक्षणिक मानक उचित हैं, वे तनाव कम करने की रणनीतियों को क्रियान्वित कर सकते हैं और सकारात्मक स्कूल माहौल को बढ़ावा दे सकते हैं। न केवल स्कूल प्रणाली, मीडिया स्वस्थ सीखने की आदतों को बढ़ावा देने, शैक्षिक संसाधनों की पेशकश करने और अकादमिक सफलता के सकारात्मक व संतुलित चित्रण को प्रोत्साहित करने वाली पहल का समर्थन करके मदद कर सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) और छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी, 2020) ने विभिन्न हितधारकों के लिए विभिन्न सिफारिशों के माध्यम से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का समाधान सुझाया है। छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं का समाधान करने के लिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति स्कूलों के भीतर परामर्श सेवाएं और सहायता नेटवर्क प्रदान करने का सुझाव देती है। यह कक्षा में मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समर्थन की अहमियत को मानती है।
इन भावनाओं की गंभीरता को देखते हुए, सहायता प्राप्त करने के लिए शीघ्रता से कार्य करना महत्वपूर्ण है। ऐसे में हमें ये बात समझनी होगी कि
‘सहायता मांगना शक्ति का द्योतक है‘
और तनाव तथा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के विभिन्न तरीके मौजूद हैं। कई देशों में सहायता और दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए हेल्पलाइन, संकट समाधान सेवाएं और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ आसानी से उपलब्ध हैं। हालांकि, तनाव सतर्कता और सतर्क व्यवहार को प्रोत्साहित करता है, लेकिन तनाव की एक निश्चित मात्रा वास्तव में सहायक और फायदेमंद मानी जाती है। परिणामस्वरूप बच्चों को उचित तैयारी करने में सहायता मिलती है, लेकिन जब यह नियंत्रण से बाहर हो जाता है, तो इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं। कई बच्चे खुद यह पता लगाते हैं कि परीक्षाओं के तनाव को कैसे संभालना है- एक शेड्यूल बनाना, दोस्तों से बात करना, अधिक अध्ययन करना, टीवी देखना, पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेना, माता-पिता या अन्य वयस्कों से बात करना, वर्कआउट करना आदि- कुछ बच्चों को इसकी आवश्यकता होती है। उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक सहायता और मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती है। लेकिन, यदि आवश्यक हो, तो हमेशा मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर, परामर्शदाता या किसी परिचित व भरोसेमंद व्यक्ति से मदद लेने का सुझाव दिया जाता है।
‘आत्मविश्वास मायने रखता है: हर बच्चे में एक अनोखी क्षमता होती है‘
यह ध्यान रखना हमेशा महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक बच्चा अलग है और कुछ रणनीतियां काम कर भी सकती हैं और नहीं भी। इसलिए, बच्चे की विशिष्ट आवश्यकताओं और उसके स्वभाव को देखते हुए पढाई के तौर-तरीकों में परिवर्तन करना भी जरूरी हो जाता है।