मातृभाषाः शिक्षा की आधारशिला,धर्मेंद्र प्रधान

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भारत एक बहुभाषी देश है। इसके विभिन्न भागों में ढेर सारी भाषाएं बोली जाती हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित बाईस भाषाओं और दस हजार से अधिक वक्ताओं द्वारा बोली जाने वाली निन्यानबे भाषाओं के अलावा, कई अन्य ऐसी भाषाएं एवं मातृभाषाएं हैं जो छोटे भाषाई समुदायों के बीच बोली जाती हैं। यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था का एक अंतर्निहित गुण है कि हम कई भाषाओं का उपयोग करते हैं और उसका आनंद लेते हैं। भाषाएं हमें जोड़े रखती हैं। हमारी सारी विविधताएं केवल बाहर से दिखाई देती हैं, लेकिन वास्तव में हम एक हैं। इस विविधता का उत्सव हम एकता में मनाते हैं।

21 फरवरी को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के इस वर्ष के संस्करण में ‘बहुभाषी शिक्षा-शिक्षा में बदलाव की जरूरत’ विषय पर ध्यान केन्द्रित किया गया। यूनेस्को की नीति के अनुरूप, हम मातृभाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के प्रति अपने दृढ़ विश्वास को दोहराते हैं। यह न सिर्फ सभी स्तरों पर शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि हमारे देश की समृद्ध भाषाई, सांस्कृतिक एवं ज्ञान परंपराओं के बारे में संपूर्ण जागरूकता को भी विकसित करेगा।

जैसाकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया है, हम बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा के अधिकार का समर्थन करते हैं और इसकी सुविधा प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा है, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सामने आने के बाद, इस बात पर बहुत चर्चा हुई है कि शिक्षा देने की भाषा क्या होगी। यहां हमें एक वैज्ञानिक तथ्य को समझना होगा कि भाषा शिक्षा का माध्यम होती है, वह संपूर्ण शिक्षा नहीं है। बहुत अधिक ‘किताबी ज्ञान’ में फंसे लोग अक्सर इस अंतर को समझने में विफल रहते हैं। बच्चा जिस भी भाषा में आसानी से सीख सके, उस भाषा को ही शिक्षा का माध्यम होना चाहिए।” राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 बहुभाषावाद को बढ़ावा देने की वकालत करती है और शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया में भाषा की शक्ति पर प्रकाश डालती है। यह नीति मातृभाषा के उपयोग को शामिल करके आजीवन एक समान शिक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों में तेजी ला सकती है क्योंकि मातृभाषा पर आधारित बहुभाषी शिक्षा को हमारी शिक्षा प्रणाली का एक प्रमुख घटक होना चाहिए। हम पाठ्यक्रमों और कक्षाओं में मातृभाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने के महत्व पर बल देते हैं। लंबे समय तक उपनिवेशीकरण के कारण, हमने भारतीय भाषाओं और उनकी समृद्ध भाषाई परंपराओं की उपेक्षा की है। हमें अपने मन को गुलामी से मुक्त करना होगा, अपने गुलामी के रवैये से छुटकारा पाना होगा और अधिक से अधिक ऊंचाइयों को हासिल करने के लिए अपना रास्ता खुद बनाना होगा। एनईपी 2020 प्रारंभिक बचपन की देखभाल व शिक्षा के सार्वभौमिकरण और सभी भारतीय भाषाओं में सीखने पर जोर देता है।

मातृभाषा संवाद का सच्चा साधन है, जोकि हमारी पहचान का मूल आधार है व हमारे व्यक्तित्व का एक अविभाज्य अंग है और हमें इसे कभी नहीं खोना चाहिए क्योंकि यह हमारे अस्तित्व के समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने को वहन करता है। आजीवन सीखने के परिपेक्ष्य में और विभिन्न संदर्भों में शिक्षा को बदलने की दृष्टि से बहुभाषावाद की क्षमता अच्छी तरह से स्थापित है। अपनी मातृभाषा में ज्ञान और जानकारी का उपयोग कर पाने या उस तक पहुंच सकने में सक्षम न हो पाना व्यक्तित्व के विकास और बौद्धिक स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। हमें माता-पिता, देखभाल करने वालों और शिक्षकों को अपने बच्चों को मातृभाषा में सीखने की प्रक्रिया में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उनकी मातृभाषा स्कूल की अन्य भाषाओं के साथ-साथ विकसित हो। यह न सिर्फ शिक्षार्थियों को उनकी अपनी भाषा में अकादमिक साक्षरता विकसित करने में सहायता करेगा बल्कि विभिन्न अवधारणाओं को समझने और अन्य भाषाओं को सीखने में भी समर्थ बनाएगा।

भारत की बहुभाषी प्रकृति की दृष्टि से स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों में कई भाषाओं को शामिल करना जरूरी है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चलता है कि स्कूल के पाठ्यक्रमों में कई भाषाओं को शामिल करने को अतिरिक्त भार नहीं माना जाता है। कई अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि मातृभाषा के माध्यम से दी गई प्राथमिक शिक्षा बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताओं को सबसे बेहतर तरीके से विकासित करती है और बुनियादी साक्षरता कौशल को अर्जित करने एवं जटिल अवधारणाओं की समझने की प्रक्रिया को सरल बनाती है। दूसरे शब्दों में, अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे अपने शैक्षिक आधार का निर्माण दूसरी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की तुलना में बेहतर तरीके से करते हैं। शिक्षा के माध्यम के रूप में सिर्फ किसी एक खास भाषा का उपयोग न सिर्फ कई बच्चों को उनकी अपनी मातृभाषा के मामले में निरक्षर बनाता है, बल्कि यह उस खास भाषा में भी निम्नतर स्तर की उपलब्धि को बढ़ावा देता है। स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने और शिक्षा में ठहराव आने के मामले में भी भाषा एक प्रमुख कारक है।

हमारे देश के जटिल भाषाई परिदृश्य को स्वीकार करते हुए, हम कक्षा एवं शिक्षार्थियों की भाषा के मामले में प्रवीणता और शिक्षण में उच्च स्तर के कौशल पर ध्यान केन्द्रित करते हुए मातृभाषा-आधारित बहुभाषी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने जा रहे हैं। मातृभाषा पर खास जोर देते हुए बच्चों को विभिन्न भाषाओं से परिचित कराया जाएगा,  जिसकी शुरुआत बुनियादी स्तर से होगी। संवैधानिक प्रावधानों और लोगों, क्षेत्रों एवं संघ की आकांक्षाओं तथा बहुभाषी शिक्षा एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए, त्रि-भाषा नीति को लागू किया जाना जारी रहेगा। यें तीन भाषाएं, जिनमें मातृभाषाएं और स्थानीय/क्षेत्रीय भाषाएं शामिल होंगी, छात्रों, क्षेत्रों और राज्यों की पसंद पर आधारित होंगी। स्कूली विषयों सहित उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें मातृभाषाओं में उपलब्ध कराई जायेंगी और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किए जायेंगे कि मातृभाषा के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा ‘आकांक्षी’ बने।

बच्चों के लिए दूसरी भारतीय भाषाओं को सीखना आसान है क्योंकि सभी भारतीय भाषाएं भारतीय भाषा परिवार नाम की एक ही भाषा-परिवार से जुड़ी हैं। भारत की शास्त्रीय भाषाओं को सीखने से साहित्य और भारतीय ज्ञान प्रणालियों के समृद्ध भंडार तक पहुंच संभव हो सकेगी। भारतीय भाषा माध्यम से सीखने की प्रक्रिया से न सिर्फ भारत में शिक्षा की जड़ें मजबूत होंगी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता भी मजबूत होगी क्योंकि संस्कृति और भाषा अविभाज्य हैं। मातृभाषा-माध्यम वाली शिक्षा को गति देने और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’  के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक उत्प्रेरक साबित होगा। हम भारत की मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षा को समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

भारत एक बहुभाषी देश है। इसके विभिन्न भागों में ढेर सारी भाषाएं बोली जाती हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित बाईस भाषाओं और दस हजार से अधिक वक्ताओं द्वारा बोली जाने वाली निन्यानबे भाषाओं के अलावा, कई अन्य ऐसी भाषाएं एवं मातृभाषाएं हैं जो छोटे भाषाई समुदायों के बीच बोली जाती हैं। यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था का एक अंतर्निहित गुण है कि हम कई भाषाओं का उपयोग करते हैं और उसका आनंद लेते हैं। भाषाएं हमें जोड़े रखती हैं। हमारी सारी विविधताएं केवल बाहर से दिखाई देती हैं, लेकिन वास्तव में हम एक हैं। इस विविधता का उत्सव हम एकता में मनाते हैं।

21 फरवरी को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के इस वर्ष के संस्करण में ‘बहुभाषी शिक्षा-शिक्षा में बदलाव की जरूरत’ विषय पर ध्यान केन्द्रित किया गया। यूनेस्को की नीति के अनुरूप, हम मातृभाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के प्रति अपने दृढ़ विश्वास को दोहराते हैं। यह न सिर्फ सभी स्तरों पर शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि हमारे देश की समृद्ध भाषाई, सांस्कृतिक एवं ज्ञान परंपराओं के बारे में संपूर्ण जागरूकता को भी विकसित करेगा।

जैसाकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया है, हम बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा के अधिकार का समर्थन करते हैं और इसकी सुविधा प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा है, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सामने आने के बाद, इस बात पर बहुत चर्चा हुई है कि शिक्षा देने की भाषा क्या होगी। यहां हमें एक वैज्ञानिक तथ्य को समझना होगा कि भाषा शिक्षा का माध्यम होती है, वह संपूर्ण शिक्षा नहीं है। बहुत अधिक ‘किताबी ज्ञान’ में फंसे लोग अक्सर इस अंतर को समझने में विफल रहते हैं। बच्चा जिस भी भाषा में आसानी से सीख सके, उस भाषा को ही शिक्षा का माध्यम होना चाहिए।” राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 बहुभाषावाद को बढ़ावा देने की वकालत करती है और शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया में भाषा की शक्ति पर प्रकाश डालती है। यह नीति मातृभाषा के उपयोग को शामिल करके आजीवन एक समान शिक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों में तेजी ला सकती है क्योंकि मातृभाषा पर आधारित बहुभाषी शिक्षा को हमारी शिक्षा प्रणाली का एक प्रमुख घटक होना चाहिए। हम पाठ्यक्रमों और कक्षाओं में मातृभाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने के महत्व पर बल देते हैं। लंबे समय तक उपनिवेशीकरण के कारण, हमने भारतीय भाषाओं और उनकी समृद्ध भाषाई परंपराओं की उपेक्षा की है। हमें अपने मन को गुलामी से मुक्त करना होगा, अपने गुलामी के रवैये से छुटकारा पाना होगा और अधिक से अधिक ऊंचाइयों को हासिल करने के लिए अपना रास्ता खुद बनाना होगा। एनईपी 2020 प्रारंभिक बचपन की देखभाल व शिक्षा के सार्वभौमिकरण और सभी भारतीय भाषाओं में सीखने पर जोर देता है।

मातृभाषा संवाद का सच्चा साधन है, जोकि हमारी पहचान का मूल आधार है व हमारे व्यक्तित्व का एक अविभाज्य अंग है और हमें इसे कभी नहीं खोना चाहिए क्योंकि यह हमारे अस्तित्व के समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने को वहन करता है। आजीवन सीखने के परिपेक्ष्य में और विभिन्न संदर्भों में शिक्षा को बदलने की दृष्टि से बहुभाषावाद की क्षमता अच्छी तरह से स्थापित है। अपनी मातृभाषा में ज्ञान और जानकारी का उपयोग कर पाने या उस तक पहुंच सकने में सक्षम न हो पाना व्यक्तित्व के विकास और बौद्धिक स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। हमें माता-पिता, देखभाल करने वालों और शिक्षकों को अपने बच्चों को मातृभाषा में सीखने की प्रक्रिया में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उनकी मातृभाषा स्कूल की अन्य भाषाओं के साथ-साथ विकसित हो। यह न सिर्फ शिक्षार्थियों को उनकी अपनी भाषा में अकादमिक साक्षरता विकसित करने में सहायता करेगा बल्कि विभिन्न अवधारणाओं को समझने और अन्य भाषाओं को सीखने में भी समर्थ बनाएगा।

भारत की बहुभाषी प्रकृति की दृष्टि से स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों में कई भाषाओं को शामिल करना जरूरी है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चलता है कि स्कूल के पाठ्यक्रमों में कई भाषाओं को शामिल करने को अतिरिक्त भार नहीं माना जाता है। कई अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि मातृभाषा के माध्यम से दी गई प्राथमिक शिक्षा बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताओं को सबसे बेहतर तरीके से विकासित करती है और बुनियादी साक्षरता कौशल को अर्जित करने एवं जटिल अवधारणाओं की समझने की प्रक्रिया को सरल बनाती है। दूसरे शब्दों में, अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे अपने शैक्षिक आधार का निर्माण दूसरी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की तुलना में बेहतर तरीके से करते हैं। शिक्षा के माध्यम के रूप में सिर्फ किसी एक खास भाषा का उपयोग न सिर्फ कई बच्चों को उनकी अपनी मातृभाषा के मामले में निरक्षर बनाता है, बल्कि यह उस खास भाषा में भी निम्नतर स्तर की उपलब्धि को बढ़ावा देता है। स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने और शिक्षा में ठहराव आने के मामले में भी भाषा एक प्रमुख कारक है।

हमारे देश के जटिल भाषाई परिदृश्य को स्वीकार करते हुए, हम कक्षा एवं शिक्षार्थियों की भाषा के मामले में प्रवीणता और शिक्षण में उच्च स्तर के कौशल पर ध्यान केन्द्रित करते हुए मातृभाषा-आधारित बहुभाषी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने जा रहे हैं। मातृभाषा पर खास जोर देते हुए बच्चों को विभिन्न भाषाओं से परिचित कराया जाएगा,  जिसकी शुरुआत बुनियादी स्तर से होगी। संवैधानिक प्रावधानों और लोगों, क्षेत्रों एवं संघ की आकांक्षाओं तथा बहुभाषी शिक्षा एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए, त्रि-भाषा नीति को लागू किया जाना जारी रहेगा। यें तीन भाषाएं, जिनमें मातृभाषाएं और स्थानीय/क्षेत्रीय भाषाएं शामिल होंगी, छात्रों, क्षेत्रों और राज्यों की पसंद पर आधारित होंगी। स्कूली विषयों सहित उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें मातृभाषाओं में उपलब्ध कराई जायेंगी और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किए जायेंगे कि मातृभाषा के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा ‘आकांक्षी’ बने।

बच्चों के लिए दूसरी भारतीय भाषाओं को सीखना आसान है क्योंकि सभी भारतीय भाषाएं भारतीय भाषा परिवार नाम की एक ही भाषा-परिवार से जुड़ी हैं। भारत की शास्त्रीय भाषाओं को सीखने से साहित्य और भारतीय ज्ञान प्रणालियों के समृद्ध भंडार तक पहुंच संभव हो सकेगी। भारतीय भाषा माध्यम से सीखने की प्रक्रिया से न सिर्फ भारत में शिक्षा की जड़ें मजबूत होंगी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता भी मजबूत होगी क्योंकि संस्कृति और भाषा अविभाज्य हैं। मातृभाषा-माध्यम वाली शिक्षा को गति देने और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’  के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक उत्प्रेरक साबित होगा। हम भारत की मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षा को समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

भारत एक बहुभाषी देश है। इसके विभिन्न भागों में ढेर सारी भाषाएं बोली जाती हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित बाईस भाषाओं और दस हजार से अधिक वक्ताओं द्वारा बोली जाने वाली निन्यानबे भाषाओं के अलावा, कई अन्य ऐसी भाषाएं एवं मातृभाषाएं हैं जो छोटे भाषाई समुदायों के बीच बोली जाती हैं। यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था का एक अंतर्निहित गुण है कि हम कई भाषाओं का उपयोग करते हैं और उसका आनंद लेते हैं। भाषाएं हमें जोड़े रखती हैं। हमारी सारी विविधताएं केवल बाहर से दिखाई देती हैं, लेकिन वास्तव में हम एक हैं। इस विविधता का उत्सव हम एकता में मनाते हैं।

21 फरवरी को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के इस वर्ष के संस्करण में ‘बहुभाषी शिक्षा-शिक्षा में बदलाव की जरूरत’ विषय पर ध्यान केन्द्रित किया गया। यूनेस्को की नीति के अनुरूप, हम मातृभाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के प्रति अपने दृढ़ विश्वास को दोहराते हैं। यह न सिर्फ सभी स्तरों पर शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि हमारे देश की समृद्ध भाषाई, सांस्कृतिक एवं ज्ञान परंपराओं के बारे में संपूर्ण जागरूकता को भी विकसित करेगा।

जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया है, हम बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा के अधिकार का समर्थन करते हैं और इसकी सुविधा प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा है, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सामने आने के बाद, इस बात पर बहुत चर्चा हुई है कि शिक्षा देने की भाषा क्या होगी। यहां हमें एक वैज्ञानिक तथ्य को समझना होगा कि भाषा शिक्षा का माध्यम होती है, वह संपूर्ण शिक्षा नहीं है। बहुत अधिक ‘किताबी ज्ञान’ में फंसे लोग अक्सर इस अंतर को समझने में विफल रहते हैं। बच्चा जिस भी भाषा में आसानी से सीख सके, उस भाषा को ही शिक्षा का माध्यम होना चाहिए।” राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 बहुभाषावाद को बढ़ावा देने की वकालत करती है और शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया में भाषा की शक्ति पर प्रकाश डालती है। यह नीति मातृभाषा के उपयोग को शामिल करके आजीवन एक समान शिक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों में तेजी ला सकती है क्योंकि मातृभाषा पर आधारित बहुभाषी शिक्षा को हमारी शिक्षा प्रणाली का एक प्रमुख घटक होना चाहिए। हम पाठ्यक्रमों और कक्षाओं में मातृभाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने के महत्व पर बल देते हैं। लंबे समय तक उपनिवेशीकरण के कारण, हमने भारतीय भाषाओं और उनकी समृद्ध भाषाई परंपराओं की उपेक्षा की है। हमें अपने मन को गुलामी से मुक्त करना होगा, अपने गुलामी के रवैये से छुटकारा पाना होगा और अधिक से अधिक ऊंचाइयों को हासिल करने के लिए अपना रास्ता खुद बनाना होगा। एनईपी 2020 प्रारंभिक बचपन की देखभाल व शिक्षा के सार्वभौमिकरण और सभी भारतीय भाषाओं में सीखने पर जोर देता है।

मातृभाषा संवाद का सच्चा साधन है, जोकि हमारी पहचान का मूल आधार है व हमारे व्यक्तित्व का एक अविभाज्य अंग है और हमें इसे कभी नहीं खोना चाहिए क्योंकि यह हमारे अस्तित्व के समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने को वहन करता है। आजीवन सीखने के परिपेक्ष्य में और विभिन्न संदर्भों में शिक्षा को बदलने की दृष्टि से बहुभाषावाद की क्षमता अच्छी तरह से स्थापित है। अपनी मातृभाषा में ज्ञान और जानकारी का उपयोग कर पाने या उस तक पहुंच सकने में सक्षम न हो पाना व्यक्तित्व के विकास और बौद्धिक स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। हमें माता-पिता, देखभाल करने वालों और शिक्षकों को अपने बच्चों को मातृभाषा में सीखने की प्रक्रिया में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उनकी मातृभाषा स्कूल की अन्य भाषाओं के साथ-साथ विकसित हो। यह न सिर्फ शिक्षार्थियों को उनकी अपनी भाषा में अकादमिक साक्षरता विकसित करने में सहायता करेगा बल्कि विभिन्न अवधारणाओं को समझने और अन्य भाषाओं को सीखने में भी समर्थ बनाएगा।

भारत की बहुभाषी प्रकृति की दृष्टि से स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों में कई भाषाओं को शामिल करना जरूरी है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चलता है कि स्कूल के पाठ्यक्रमों में कई भाषाओं को शामिल करने को अतिरिक्त भार नहीं माना जाता है। कई अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि मातृभाषा के माध्यम से दी गई प्राथमिक शिक्षा बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताओं को सबसे बेहतर तरीके से विकासित करती है और बुनियादी साक्षरता कौशल को अर्जित करने एवं जटिल अवधारणाओं की समझने की प्रक्रिया को सरल बनाती है। दूसरे शब्दों में, अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे अपने शैक्षिक आधार का निर्माण दूसरी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की तुलना में बेहतर तरीके से करते हैं। शिक्षा के माध्यम के रूप में सिर्फ किसी एक खास भाषा का उपयोग न सिर्फ कई बच्चों को उनकी अपनी मातृभाषा के मामले में निरक्षर बनाता है, बल्कि यह उस खास भाषा में भी निम्नतर स्तर की उपलब्धि को बढ़ावा देता है। स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने और शिक्षा में ठहराव आने के मामले में भी भाषा एक प्रमुख कारक है।

हमारे देश के जटिल भाषाई परिदृश्य को स्वीकार करते हुए, हम कक्षा एवं शिक्षार्थियों की भाषा के मामले में प्रवीणता और शिक्षण में उच्च स्तर के कौशल पर ध्यान केन्द्रित करते हुए मातृभाषा-आधारित बहुभाषी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने जा रहे हैं। मातृभाषा पर खास जोर देते हुए बच्चों को विभिन्न भाषाओं से परिचित कराया जाएगा,  जिसकी शुरुआत बुनियादी स्तर से होगी। संवैधानिक प्रावधानों और लोगों, क्षेत्रों एवं संघ की आकांक्षाओं तथा बहुभाषी शिक्षा एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए, त्रि-भाषा नीति को लागू किया जाना जारी रहेगा। यें तीन भाषाएं, जिनमें मातृभाषाएं और स्थानीय/क्षेत्रीय भाषाएं शामिल होंगी, छात्रों, क्षेत्रों और राज्यों की पसंद पर आधारित होंगी। स्कूली विषयों सहित उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें मातृभाषाओं में उपलब्ध कराई जायेंगी और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किए जायेंगे कि मातृभाषा के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा ‘आकांक्षी’ बने।

बच्चों के लिए दूसरी भारतीय भाषाओं को सीखना आसान है क्योंकि सभी भारतीय भाषाएं भारतीय भाषा परिवार नाम की एक ही भाषा-परिवार से जुड़ी हैं। भारत की शास्त्रीय भाषाओं को सीखने से साहित्य और भारतीय ज्ञान प्रणालियों के समृद्ध भंडार तक पहुंच संभव हो सकेगी। भारतीय भाषा माध्यम से सीखने की प्रक्रिया से न सिर्फ भारत में शिक्षा की जड़ें मजबूत होंगी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता भी मजबूत होगी क्योंकि संस्कृति और भाषा अविभाज्य हैं। मातृभाषा-माध्यम वाली शिक्षा को गति देने और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’  के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक उत्प्रेरक साबित होगा। हम भारत की मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षा को समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

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