पड़ाव, वाराणसी । अघोर पीठ, श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम्, अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम में आज श्री सर्वेश्वरी समूह का 64वाँ स्थापना दिवस, संस्था अध्यक्ष अवधूत गुरुपद संभव राम जी के सान्निध्य में में मनाया हर्षोल्लासपूर्वक गया। कार्यक्रम को मनाने के क्रम में नियमित प्रातःकालीन आरती एवं सफाई-श्रमदान के उपरांत प्रातः 6 बजे दर्जनों चार पहिया व दो पहिया वाहनों में सैकड़ों समूह सदस्यों द्वारा एक प्रभातफेरी पड़ाव आश्रम से ‘अघोर टेकरी’ सारनाथ तक निकली गई। प्रभातफेरी में आगे चल रहे मुख्य वाहन पर अघोरेश्वर महाप्रभु का विशाल चित्र फूल-मालाओं से सुसज्जित करके लगाया गया था। अघोर टेकरी पहुंचकर संस्था के मंत्री डॉ० एस० पी० सिंह जी ने अघोरेश्वर चरण पादुका का पूजन किया और सर्वेश्वरी ध्वज फहराया। सफलयोनि का पाठ श्री पृथ्वीपाल जी ने किया। तदोपरांत संस्था के मुख्यालय अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम के परिसर में पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी की प्रतिमा का पूजन करने के पश्चात् सर्वेश्वरी ध्वजारोहण किया। अघोर शोध संस्थान के निदेशक डॉ० अशोक कुमार जी ने सफलयोनि का पाठ किया। तत्पश्चात् शर्द्धालुओं में प्रसाद वितरण किया गया। इसके बाद लागभग 11 बजे गंगातट स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल पर संस्था के उपाध्यक्ष श्री सुरेश सिंह जी ने ध्वजारोहण किया।
इस अवसर पर पूर्वाह्न 11:30 आयोजित पारिवारिक विचार गोष्ठी में उपस्थित समूह सदस्यों को संबोधित करते हुए श्री सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने अपने आशीर्वचन में कहा-
उठा हुआ ही गिरे हुए को उठाता है – औघड़ गुरुपद संभव राम जी
परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु द्वारा यह जो 21 सितम्बर पर श्री सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की गई है, वह हम-आप सभी के लिए है। हमलोग कैसे आगे बढ़ें, कैसे हम उस ऊँचाई को प्राप्त करें जिससे उसको जान सकें कि जिसको जानने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रहता। कई माध्यमों से बहुत समझाया, बहुत कहा गया लेकिन हमलोग उस पर खरे नहीं उतर पाए। लेकिन इससे इतना तो हुआ कि हमारे मन-मस्तिष्क का बहुत-सा भटकाव अब शांत हो गया है, जीवन जीने में बहुत आसानी हो गई है। जिस मुख्य लक्ष्य को हमें प्राप्त करना है वह उतना आसान भी नहीं है और वह कठिन भी नहीं है। वह आसान इसलिए नहीं है कि हमारे अन्दर जो प्रवृत्तियाँ पड़ी हुई हैं, हमारे अन्दर जो आगंतुक विचार हैं, भावनायें हैं जो हमारे या अपने कहिये या हमारे और उस सर्वव्यापी ईश्वर कहिये उसमें हमारा मोह, राग और द्वेष, घृणा, इर्ष्या एक रोड़ा बनकर खड़े हो जाते हैं। यह सब इस समाज में बहुत तेजी से फैला हुआ है। और आसान इसलिए है कि वह सबकुछ हमारे हाथ में ही है, क्योंकि हम अगर चाहें तो विवेक, बुद्धि और उस ज्ञान को प्राप्त करके अपने-आप को उस तरह से समाज में भी, भीड़ में भी, एकांत में भी रह सकते हैं और ईश्वर के करीब तक पहुँचने में बहुत सुविधा हो जाती है। जैसे-जैसे उसके करीब हमलोग जाते हैं वैसे-वैसे हमारी आत्मिका शक्ति, हमारी बौद्धिक शक्ति बढ़ती जाती है और हम बहुत से कार्यों को करने में सक्षम हो जाते हैं।
पूज्य बाबा जी ने आगे कहा कि उन संत-महात्मा, महापुरुषों के आश्रमों में ही वेद-शास्त्र और पुराणों की भी रचना हुई है। यह चीज हमें बहुत सहज में उपलब्ध भी है, सबको नहीं है, बहुत कम लोग हैं जिनको यह उपलब्ध हैं। उपलब्ध होते हुए भी यदि हमलोग उसको प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं, तो यह हमारा दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। क्योंकि हमारे पास उसके लिए जगह ही नहीं है, हम पहले से ही भरे हुए हैं। इसीलिए कहा जाता है कि संत-महात्मा के पास जाइए तो अपने मन-मस्तिष्क को खाली करके वहाँ जाइए, उस स्थान पर आप बैठेंगे, कोई भी विचार आपके मन में ना आए, कुछ याद ना रहे, आप शांत-एकांत होकर बैठिये तो आपको अपने-आप में बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है।
आजादी के पहले हमारे इस देश के हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सब लोग कंधे-से-कंधा मिलाकर अपने लोगों को बचाने के लिए चलते थे। लेकिन आजादी के कुछ सालों बाद अब स्थिति यह हो गई कि एक-दूसरे से लोग घृणा करने लगे हैं। ईश्वर तो यह कहता नहीं है। चाहे कोई मजहब का हो, धर्म का हो, किसी रिलीजन का हो। ईश्वर को हम तोड़ देते हैं कि यह हमारा ईश्वर है, वह तुम्हारा ईश्वर है। सभी कहते हैं कि सब जगह हमारा ही ईश्वर है। लेकिन उसके यहाँ नहीं है, इस मजहब में नहीं है, इस धर्भ में नहीं है। उसके टुकड़े हम खुद किए हुए हैं। यह सब हमारी बुद्धि की देन है। इतना मूर्ख बनाकर हमलोगों को बांट दिया गया, लड़ा दिया गया, लड़ाया जा रहा है। इसका दुष्परिणाम हमारा राष्ट्र ही नहीं, यहाँ के रहने वाले लोग ही नहीं, पूरा विश्व भोग रहा है। अपनी-अपनी बात को मनवाने के लिए कितनी लड़ाईयाँ चल रही हैं और वह कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं, बढ़ती ही जा रही हैं, बढ़ते बढ़ते हो सकता है विकराल रूप भी ले ले, तब क्या होगा ? तब न वह आपका ईश्वर मदद करेगा, न आपका अल्ला मदद करेगा, न आपका गॉड मदद करेगा। यह सब हमारी दुर्बुद्धिता के कारण हो रहा है। अब तो भाई-भाई में भी दुराव हो रहा है, अगर बड़ा भाई सक्षम है, छोटा नहीं है तो उसका भी वह हड़प ले रहा है, अगर छोटा सक्षम है तो बड़ा का हड़प ले रहा है। ऐसे-ऐसे कानून भी बन गए हैं जो कई परिवार में विघटन करा चुके हैं, विघटन करा रहे हैं।
पूज्य बाबा ने आगे कहा कि पाप के पाप लोभ के वशीभूत सभी लोग हो गए हैं। आज कहीं भी, कोई काम कराना हो, तो बिना पैसा दिए, बिना खर्चा किए, होता ही नहीं। तो जब तक यह नहीं सुधरेगा तब तक हमारा समाज, हमारा देश नहीं सुधर पाएगा। यह सब करने वाले हम ही आप हैं। जो एकदम लखैरा हो जाता है वही नेता होता है, वही नेतागिरी करता है और लोग उसी को देखते भी हैं, पूछते भी हैं- आपके समाचार पत्रों में और टीवी पर ऐसे ही लोगों का बोलबाला है और उन्हीं को सुनते-सुनते, देखते-देखते हमारे भी मन-मस्तिष्क उसी तरह के हो जाते हैं। जबकि हमको होना क्या चाहिए? हमें उस पराप्रकृति की प्रकृति में अपनी प्रकृति को देखना चाहिए। उन महापुरुषों की प्रकृति में अपने को देखना चाहिए। और हम देख रहे हैं ऐसे छुछबेहर लोगों को जो खुद भी दुष्ट हैं, एक-दूसरे को लड़ा-भिड़ा रहे हैं, गालियां दे रहे हैं, मार-काट रहे हैं। अपनी आने वाली पीढ़ी को भी हमलोग वही दिखा रहे हैं।
गिरा हुआ आदमी गिरे हुए को नहीं उठा पाएंगे। जो उठा हुआ है वहीं गिरे को उठाता है। मनुष्य शरीर से मनुष्य योनि में ही आना है और उस परमतत्व की प्राप्ति के लिए पप्रयत्नशील होना है। नहीं तो इन दो हाथों की जगह दो पैर और दे दिए जाएंगे, हम चौपाया हो जाएंगे। चौरासी लाख योनियों ने भटकते रहेंगे। कुछ लोग तो समझ जाते हैं, लेकिन कुछ लोग तो नहीं समझने का प्रण कर लिये हैं उनके लिए कुछ नहीं कहना है। समाज में रहना है या राष्ट्र-रक्षण में रहना है तो ऐसे लोगों को भी सजा देने के लिए उनका भी सामना करने के लिए उतना सामर्थ्य होना चाहिए। उसको भी शांत करने के लिए, उनका मान-मर्दन करने के लिए हमें वह शक्ति की आवश्यकता है, उसकी उपासना की आवश्यकता है। लोग जो अच्छे से रहते हैं, शांति से रहते हैं उनको भी कई लोग उकसा देते हैं। ऐसा नहीं है कि हम शांत लोगों को देख लें कि बहुत अच्छे हैं, सुलझे हैं, शांत हैं, तो वह कमजोर हैं। गोष्ठी के अन्य वक्ताओं में पृथ्वीपाल, अखिलेश सिंह, सीमा, गिरिजा तिवारी, संतोष सिंह, धर्मेन्द्र गौतम, डॉ अनिल कुमार सिंह थे। मंगलाचरण कुमारी राशि ने किया और सञ्चालन डॉ वामदेव पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्था के उपाध्यक्ष सुरेश सिंह जी ने किया।