52 दिन होने को आ गया, एक कारतूस तक नहीं बिका। 10 जून और फिर आगे भी यही स्थिति रहने वाली है। दुकान का किराया और बिजली, स्टाफ व मेंटेनेंस का खर्च लगभग 40 हजार महीना तक पहुँच जा रहा है। समझ लीजिए कि बाप-दादा की कमाई बैठे-बैठे खा रहे हैं। यह कहना है वरुणा पुल के पास के शस्त्रालय के संचालक का…। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि असलहा और कारतूस विक्रेताओं की स्थिति मौजूदा समय में कैसी चल रही है?
वाराणसी आर्म्स डीलर एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरजीत सिंह तीन पीढ़ी से असलहा-कारतूस बेच रहे हैं। अमरजीत सिंह ने बताया कि 10 साल पहले शहर में असलहा-कारतूस की 24 दुकानें हुआ करती थीं। अब 11 दुकानें ही बची हैं, इनमें से भी चार दुकानें बंद होने के कगार पर आ गई हैं।
असलहा-कारतूस की दुकानें लगातार बंद क्यों हो रही हैं? इस सवाल के जवाब में अमरजीत सिंह ने कहा कि पहले वैवाहिक समारोहों में फायरिंग की जाती थी। अदालत और पुलिस-प्रशासन की सख्ती से अंकुश लगा। हालांकि, यह अच्छी पहल है।
असलहे के नए लाइसेंस भी अब इक्का-दुक्का ही बन पा रहे हैं। असलहों की मरम्मत के लिए भी कभी – कभी ही कोई आता है। ऐसे में भला हम कितने एयर गन बेचें और उससे कितना ही कमा पाएंगे। इसीलिए लोगों ने इस धंधे से दूरी बना ली है और दूसरा काम शुरू कर दिया है।
बंदूक जमा कर लोग भूल जा रहे, किराया भी नहीं दे रहे
शहर की असलहा-कारतूस की 11 दुकानों में मौजूदा समय में 3000 शस्त्र जमा हैं। इनमें से 500 बंदूक है। शस्त्रालय में एक असलहा रखने का प्रति माह का किराया 300 रुपये है। अमरजीत सिंह ने कहा कि बंदूक की वैल्यू जीरो है। लाइसेंस रिन्युअल कराने में खर्च लगभग 10 हजार रुपये आ जाता है।
लोग शस्त्रालय में बंदूक जमा कर देते हैं और फिर न उसका किराया देने आते हैं और न ही उसे ले जाते हैं। जो असलहे शस्त्रालयों में जमा हैं, उन्हें मालखाने में जमा कराने की मांग सरकार से लगातार की जा रही है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
एक माह में बेच लेते थे 20 असलहे, अब दो भी नहीं
अमरजीत सिंह ने कहा कि सरकार के स्तर से ध्यान नहीं दिया जाएगा तो शस्त्रालय के संचालकों की स्थिति नहीं सुधर पायेगी। 10-12 वर्ष पहले हम महीने में 20 असलहे बेच लेते थे और अब दो भी नहीं बेच पाते हैं। सरकार व्यापारी, डॉक्टर जैसे वर्ग के लोगों को सुरक्षा के लिए असलहे का लाइसेंस दे।
दूसरी बात यह है कि वरासत के लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया आसान कर उनकी संख्या बढ़ाई जाए। तीसरी बात यह है कि अब 24 की जगह 11 दुकानें ही रह गई हैं तो हमारे यहां शस्त्र जमा करने का कोटा बढ़ा दिया जाए।