कोयला गैसीकरण को एक विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, इसे 2030 तक 100 मीट्रिक टन करने का लक्ष्य है
मंत्री ने उद्योग भागीदारों से कोकिंग कोयला ब्लॉकों की नीलामी में शामिल होने का आग्रह किया
नई दिल्ली / मुंबई। केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने आज मुंबई में इस्पात क्षेत्र पर आयोजित एक प्रमुख द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी एवं सम्मेलन, इंडिया स्टील के छठे संस्करण को संबोधित किया। इस्पात पर अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी एवं सम्मेलन ने नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के प्रमुखों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और नागरिक समाज के बीच इस्पात क्षेत्र की उभरती गतिशीलता और कोयला उद्योग के साथ इसके सहजीवी संबंधों पर संवाद के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य किया।

अपने मुख्य भाषण में, केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री, श्री जी. किशन रेड्डी ने इस बात पर जोर दिया कि इस्पात भारत की आर्थिक प्रगति का आधार है और विकसित भारत 2047 के लिए राष्ट्रीय दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक है। उन्होंने बताया कि कैसे भारत बुनियादी ढांचे के विकास में नए वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है। जम्मू और कश्मीर में विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल चिनाब ब्रिज से लेकर तमिलनाडु में ऐतिहासिक पम्बन ब्रिज तक – यह सब इस्पात क्षेत्र की बढ़ती ताकत के कारण संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि देश की बुनियादी ढांचे की यात्रा में हर मील का पत्थर इस्पात से बना है। यह एक गतिशील राष्ट्र की प्रगति और आकांक्षाओं को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि भारत के इस्पात क्षेत्र में हाल ही के वर्षों में प्रभावशाली वृद्धि हुई है जिससे देश विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक राष्ट्र बन गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों का उल्लेख करते हुए मंत्री ने इस्पात को भारत का “उदयमान क्षेत्र” बताया, जो आत्मनिर्भर भारत अभियान के माध्यम से घरेलू खपत, औद्योगिक विस्तार और आत्मनिर्भरता का प्रमुख कारक है।
श्री रेड्डी ने इस बात पर जोर दिया कि यदि इस्पात भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है तो कोयला और खनन क्षेत्र इसकी मजबूत नींव है। उन्होंने कच्चे माल की सुरक्षा विशेषकर कच्चे माल की रणनीति और कच्चे माल के मिश्रण में बदलाव के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि लौह अयस्क, कोकिंग कोयला, चूना पत्थर और मैंगनीज, निकल और क्रोमियम जैसे आवश्यक मिश्र धातु तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक आर्थिक आवश्यकता और रणनीतिक अनिवार्यता दोनों है।
भारत ने हाल ही में पिछले वित्तीय वर्ष में एक बिलियन टन कोयला उत्पादन और प्रेषण की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है – जो राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम है। ऊर्जा सांख्यिकी 2025 से पता चलता है कि कोयला भारत की कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 60% और इसके विद्युत उत्पादन का 70% हिस्सा बना हुआ है। जबकि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं, मंत्री ने पुन: पुष्टि की कि निकट भविष्य में कोयला भारत के ऊर्जा और औद्योगिक परिदृश्य का केंद्र बना रहेगा।

इस समस्या के समाधान के लिए खान मंत्रालय ने निम्न-श्रेणी के अयस्क के बेनिफिशिएशन को बढ़ावा देने के लिए एक नीति का प्रस्ताव किया है जिस पर वर्तमान में सार्वजनिक परामर्श चल रहा है। चूना पत्थर और निम्न-श्रेणी के अयस्क के लिए संशोधित रॉयल्टी दरों सहित नीतिगत सुधारों को निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
मंत्री ने प्रधानमंत्री द्वारा दोहराए गए ग्रीनफील्ड खदानों के समय पर उपयोग के महत्व पर भी जोर दिया। ऐसी परिसंपत्तियों के संचालन में देरी राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी है। मंत्रालय राज्यों के साथ मिलकर काम कर रहा है और खदान विकास में तेजी लाने के लिए बोलीदाताओं के साथ प्रगति की नियमित समीक्षा कर रहा है। मंजूरी को सुव्यवस्थित करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के साथ भी समन्वय बढ़ाया गया है। पिछले छह महीनों में कई प्रमुख दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं और आगे भी सुधार जारी हैं।
इस दिशा में एक प्रमुख पहल राष्ट्रीय कोयला गैसीकरण मिशन है जिसका लक्ष्य 2030 तक 8,500 करोड़ रुपये के निवेश से 100 मीट्रिक टन गैसीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना है। यह पहल संश्लेषण गैस (सिनगैस) उत्पन्न करने के लिए उच्च-राख, गैर-कोकिंग घरेलू कोयले के उपयोग को बढ़ावा देती है, जो डीआरआई (डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन) इस्पात निर्माण का एक स्वच्छ विकल्प है। उन्होंने उद्योग से इस परिवर्तनकारी तकनीक में निवेश करने का आग्रह किया। यह न केवल उत्सर्जन को कम करती है बल्कि ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक मूल्य श्रृंखलाओं को भी बढ़ाती है।इसके अलावा, मंत्री ने खनिक समुदाय से उन्नत मिश्र धातुओं और हरित प्रौद्योगिकियों का समर्थन करने के लिए डंप और टेलिंग से महत्वपूर्ण खनिजों की प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। मौजूदा डंप से परीक्षण और प्राप्ति को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में लिया जाना चाहिए।

सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ कच्चे माल की रणनीति की यह यात्रा सामूहिक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत इस्पात क्षेत्र के लिए एक साहसिक और महत्वाकांक्षी मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। राष्ट्रीय इस्पात नीति में 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन और 2047 तक 500 मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। कोयला मंत्रालय और खान मंत्रालय इस दृष्टिकोण के साथ पूरी तरह से जुड़े हुए हैं और इसे साकार करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं।
श्री रेड्डी ने विश्वास व्यक्त किया कि केंद्र, राज्य सरकारों और उद्योग हितधारकों के बीच घनिष्ठ सहयोग के माध्यम से भारत न केवल घरेलू स्तर पर अपनी कच्चे माल की आवश्यकताओं को पूरा करेगा बल्कि टिकाऊ आत्मनिर्भर इस्पात उत्पादन में अग्रणी राष्ट्र के रूप में भी उभरेगा। उन्होंने सम्मेलन में सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे ऐसी नीतियों को आकार देने में सक्रिय रूप से योगदान दें जो देश के इस्पात पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक हरित और अधिक लचीला भविष्य सुनिश्चित करें।इससे पहले उद्घाटन दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई केन्द्रीय मंत्रियों और तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित किया और इस क्षेत्र में सहयोगात्मक विकास के महत्व पर जोर दिया। स्टील एक्सपो के दूसरे दिन कोयला मंत्रालय के सचिव विक्रम देव दत्त ने इस्पात क्षेत्र में कच्चे माल की उपलब्धता पर गोलमेज वार्ता में भाग लिया और कोयला उत्पादन क्षेत्र में आए उल्लेखनीय बदलाव के बारे में बताया।

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