“यादों की गुल्लक…”
कहीं शून्य में ठहरा सा मन
धूल की फूल के भूल भुलक्कड़ में
सिमटा होता है यादों की
किसी पुराना सा गुल्लक में ।।
रक्त सिर्फ धमनियों में या
कलाइयों के काटने से नहीं बहता
रिसता है आंखों से भी,
किसी के दिए गए आघात से ।
थकी हुई सी आंखें जो
बरसों पहले गए
प्रिय की याद में सदियों से
इंतजार करता हुआ पश्चाताप से ।।
प्रेम सिर्फ विछोह से नहीं मरता
मर जाता है…,
प्रेम में किए गए छल से भी
हम आंखों में
उसकी दिए गए कड़वी यादों को
जी भर के बहाने के बावजूद भी
वह खाली नहीं हो पाती
ऐसे जैसे सावन की
बरसातों में भर जाते हैं
प्रतिक्षाएं यूं ही नहीं
तिरोहित हो जाती है
मौन हो जाती है
किसी के हटा लिए गए
अवलम्ब से भी ।
कहीं शुन्य में ठहरा सा मन
धूल की फूल के भूल भुलक्कड़ में ।
सिमटा होता है यादों की
किसी पुराना सा गुल्लक में ।।
मनोज शाह मानस
डब्ल्यू जेड 548 बी नारायणा गांव
नई दिल्ली 110028
मो. नं. 7982510985