अनावश्यक प्रशासनिक या कानूनी तकनीकियोें के परिणामस्वरूप विचाराधीन कैदियों की दैहिक स्वतंत्रता बाधित न हो- न्यायमूर्ति संजय किशन कौल

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*न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने गिरफ्तारी के पूर्व, गिरफ्तारी के समय और रिमांड स्तर पर व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में विस्तार से चर्चा की*

*’सुगम न्याय प्राप्ति’ विषय पर उत्तर क्षेत्रीय सम्मेलन का हुआ आयोजन*

*राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा आयोजित उत्तर क्षेत्रीय सम्मेलन*

         वाराणसी। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के द्वारा ’सुगम न्याय प्राप्ति’ विषय पर उत्तर क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन शनिवार को जनपद वाराणसी में किया गया। जिसका उद्घाटन न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, उच्चतम न्यायालय/कार्यपालक अध्यक्ष, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के द्वारा किया गया। इस क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन न्याय वितरण प्रणाली को मजबूत करने और प्रभावी तरीकों पर विचार-विमर्श करने के उद्देश्य से किया गया ताकि आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों तक न्याय की पहुंच हो सके।  

       न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने अपने संबोधन में कहा कि हमें न केवल मामलों को जल्दी से निपटाने की जरूरत है बल्कि यह भी देखना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक जेल में मात्र इसलिए न बंद रहे क्योंकि उसके मामले का विचारण अथवा अपील न्यायालय में लंबित चल रही है। उन्होंने अपराध के पीड़ितों को समय पर  मुआवजा प्रदान किये जाने और उनके पुनर्वास की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनावश्यक प्रशासनिक या कानूनी तकनीकियोें के परिणामस्वरूप विचाराधीन कैदियों की दैहिक स्वतंत्रता बाधित न हो। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने गिरफ्तारी के पूर्व, गिरफ्तारी के समय और रिमांड स्तर पर व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने विभिन्न राज्यों में जेल की अच्छी स्थिति न होने और उसमें सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने प्रतिनिधियों के रूप में भाग लेने वाले 11 राज्यों के न्यायाधीशों और अन्य प्रतिभागियों से भी जेलों में निरूद्ध बंदियों की संख्या को कम करने के लिए उपयुक्त मामलों में परिवीक्षा प्रदान करने की अपील की।

    न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने कहा कि विधिक साक्षरता के प्रसार में कानून के छात्रों की भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है क्योंकि वे समाज के वंचित वर्गों को न्याय तक पहुंच प्रदान करने का एक मजबूत साधन हो सकते हैं। .उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य में प्री-लिटिगेशन मीडियेशन के उपयोग के सकारात्मक परिणामों का भी उल्लेख किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में आर्बिटेªशन, एन.आई एक्ट, लघु आपराधिक वादों एवं पारिवारिक विवादों के लिए आयोजित विशेष लोक अदालतों के उत्साहजनक परिणामों के विषय में भी बताया। 

     इससे पूर्व न्यायमूर्ति श्री प्रीतिंकर दिवाकर, उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने अपने स्वागत भाषण में न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता पर विशेष बल दिया। उद्घाटन सत्र के अंत में न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिनिधियों को धन्यवाद दिया और आशा व्यक्त की कि इस एक दिवसीय ’उत्तर क्षेत्रीय सम्मेलन’ का परिणाम उत्साहवर्धक होगा और  गरीबों और समाज के हाशिए पर रह रहे लोगों तक न्याय की पहुंच का लक्ष्य को प्राप्त करने में सुगमता होगी। 

     इस महत्वपूर्ण अवसर पर पंजाब राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा तैयार की गयी ’इनसाइड पंजाब प्रिजन्स’ स्टडी ऑफ द कंडीशंस ऑफ प्रिजंस इन पंजाब  नामक शोध रिपोर्ट का भी विमोचन किया गया। दिन भर चलने वाले सम्मेलन में न्याय की सुगम पहुंच एवं न्याय वितरण प्रणाली की मौजूदा स्थिति और भविष्य की चुनौतियों की पहचान किये जाने हेतु विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा किया गया।

       सम्मेलन में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, उच्च न्यायालय इलाहाबाद के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर, वरिष्ठ न्यायाधीश उच्च न्यायालय इलाहाबाद/कार्यपालक अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, उच्च न्यायालय इलाहाबाद/अध्यक्ष उच्च न्यायालय विधिक सेवा भी उपस्थित थे। इस सम्मेलन में 11 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के माननीय न्यायमूर्तिगण एवं सदस्य सचिवगण के द्वारा प्रतिभाग किया गया।

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