एब्स्टीन एनामली से पीड़ित महिला मरीज के गले की नस जुगलर वेन के द्वारा दिल में लगाया तैरता हुआ लीडलेस पेसमेकर

Spread the love

डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर:डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने किया यह इंटरवेंशन प्रोसीजर
प्रदेश के शासकीय अस्पताल में पहली बार डॉक्टरों ने संभवतः यह देश के किसी भी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एब्सटीन एनामली विद जुगलर एप्रोच के साथ पहला केस

रायपुर./.  पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में पहली दफ़ा हृदय की जन्मजात बीमारी एब्सटीन एनामली से पीड़ित 30 वर्षीय महिला मरीज के गर्दन के रास्ते हृदय में तैरते हुए लीडलेस पेसमेकर लगाकर मरीज की जीवन रक्षा की गई। एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के नेतृत्व में हुए इस उपचार प्रक्रिया की विशेष बात यह रही कि मरीज हृदय की जन्मजात बीमारी से पीड़ित होने के कारण पहले ही वॉल्व रिप्लेसमेंट की सर्जिकल प्रक्रिया से गुजर चुकी थी, इसके साथ ही उसे प्री एक्लेम्पसिया की समस्या थी, साथ ही साथ मरीज का कम्प्लीट हार्ट ब्लॉकेज हो चुका था। इन सब जटिलताओं के कारण मरीज को सामान्य पेसमेकर लगाना संभव नहीं था इसलिए गर्दन की नस जिसे जुगलर वेन कहते हैं, के रास्ते दिल में तैरने वाला पेसमेकर लगाकर जान बचाई।

   डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार, पैर की नस के रास्ते (फीमोरल आर्टरी) से एसीआई में इससे पहले लीडलेस पेसमेकर लगाया जा चुका है लेकिन गले के नस के रास्ते लीडलेस पेसमेकर लगाने का देश एवं राज्य का संभवतः यह पहला केस है। महिला का उपचार स्वास्थ्य सहायता योजना अंतर्गत निशुल्क हुआ।

ऐसे लगाया तैरता हुआ पेसमेकर
डॉ. स्मित श्रीवास्तव बताते हैं कि सबसे पहले गर्दन की नस दायें जुगलर वेन के रास्ते 23 फ्रेंच का शीथ डाला गया। उसके बाद माइक्रा कैथेटर के द्वारा लीडलेस पेसमेकर को राइट वेंट्रीकल तक ले जाया गया। उसके बाद हृदय के सारे पैरामीटर चेक किये गये। सारे पैरामीटर ठीक होने पर राइट वेंट्रीकल में तैरता हुआ लीडलेस पेसमेकर को छोड़ा गया उसके बाद पुनः हृदय के पैरामीटर को जांचा गया। सबकुछ ठीक होने पर डिवाइस को वहीं डिप्लाइड (विशेष स्थिति और स्थान में छोड़ना) कर दिया गया।

एब्सस्टीन एनामली नामक उपरोक्त केस के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ. स्मित बताते हैं कि एक 30 वर्षीय महिला मरीज जिसे कंजनाइटल हार्ट डिजीज विद एब्सटीन एनामली था, पालपिटेशन विद न्याहा (NYHA) क्लास थर्ड (न्यूयार्क हार्ट एसोसिएशन फंक्शनल क्लासिफिकेशन या संक्षेप में एनएचवाईए, दिल की विफलता को वर्गीकृत करने का एक पैमाना) के साथ प्री एक्लेम्पसिया से पीड़ित थी। इस मरीज का टीवीआर मार्च 2024 में हुआ और सिम्पटोमैटिक कम्पलीट हार्ट ब्लॉक के साथ 25 मार्च को एसीआई में भर्ती हुई। तमाम परीक्षण के बाद मरीज की जान बचाने के लिए लीडलेस पेसमेकर लगाने का फैसला लिया क्योंकि मरीज को नॉर्मल लीड वाला पेसमेकर डालना संभव नहीं था। हालांकि लीडलेस पेसमेकर में भी बहुत चैलेंज था जैसे कि इस मरीज में फीमोरल वेन से प्रोसीजर करना कठिन था। आरवीओटी का प्रोसीजर भी हो चुका था परंतु हमारी टीम ने यह सुनिश्चित किया कि मरीज को लीडलेस पेसमेकर लगे और वह एक सामान्य जीवन की ओर बढ़ सके। संभवतः यह देश के किसी भी गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज में एब्सटीन एनामली विद जुगलर एप्रोच के साथ पहला केस और छत्तीसगढ़ में ऐसा दूसरा केस है। इस केस में डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ सहयोगी टीम में डॉ. कुणाल ओस्तवाल, डॉ. शिव कुमार शर्मा, डॉ. प्रतीक गुप्ता, कैथलैब टेक्नीशियन आई. पी. वर्मा, नर्सिंग स्टॉफ नीलिमा शर्मा, गौरी, रौशनी, वंदना, डिगेन्द्र, खेम, पूनम, महेन्द्र आदि का सहयोग रहा।

हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डाॅ. कृष्णकांत साहू इस केस के संबंध में जानकारी देते हुए बताते हैं कि इस संस्थान के कार्डियक सर्जरी विभाग में अब तक एब्सटीन एनामली मरीजों की 4 सफल सर्जरी हो चुकी है। यह बहुत ही दुर्लभ बीमारी है एवं इसका ऑपरेशन बहुत ही जटिल और गिने चुने संस्थानों में केवल दक्ष सर्जन द्वारा किया जाता है। यह इस संस्थान के लिए गौरव की बात है। एब्सटीन एनामली का सफल ऑपरेशन हार्ट चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एंड टीम द्वारा एक महीना पहले किया गया था।
क्या होती है एब्सटिन एनामली बीमारी
यह एक जन्मजात हृदय रोग है। जब बच्चा मां के पेट के अंदर होता है, यानी भ्रूणावस्था के पहले 6 सप्ताह में बच्चे के दिल का विकास होता है। इसी विकास के चरण में बाधा आने पर बच्चे का हृदय असामान्य हो जाता है। इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइकस्पिड वाल्व ठीक से नहीं बन पाता और यह अपनी जगह न होकर दायें निलय की तरफ चला जाता है जिसके कारण दायां निलय ठीक से विकसित नहीं हो पाता जिसको एट्रियालाइजेशन का राइट वेंट्रीकल कहा जाता है। साथ ही साथ हृदय के ऊपर वाले चेम्बर में छेद हो जाता है। इससे दायां निलय बहुत ही कमजोर हो जाता है एवं फेफड़े में पहुंचने वाले खून की मात्रा कम हो जाती है जिससे रक्त को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता जिससे शरीर नीला पड़ जाता है एवं ऑक्सीजन सैचुरेशन 70 से 80 के बीच या इससे भी कम रहता है। इसी कारण ऐसे मरीज ज्यादा समय तक नहीं जी पाते। यह मरीज या तो अनियंत्रित धड़कन या राइट वेन्ट्रीकुलर फेल्योर के कारण मर जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.