वाराणसी, / आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, कल्लीपुर, वाराणसी में 09 से 13 सितंबर, 2024 तक ‘आर्या परियोजना’ के अंतर्गत केंचुआ खाद उत्पादन तकनीकी विषय पर पांच दिवसीय व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य किसानों और बेरोजगार युवाओं को स्वावलंबी बनाकर कृषि से जुड़ी नई तकनीकों के माध्यम से रोजगार के अवसर प्रदान करना था।
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रभारी, डॉ. नवीन कुमार सिंह ने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट, या केंचुआ खाद, पारंपरिक गोबर खाद की तुलना में अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें 5 गुना अधिक नाइट्रोजन, 7 गुना फोस्फोरस, 11 गुना पोटाश, और कई अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं जो पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कि इस तकनीक से प्रशिक्षण प्राप्त करके बेरोजगार युवक रोजगार का साधन बना सकते हैं और इसे छोटे स्तर पर भी प्रारंभ किया जा सकता है।
केंद्र के सस्य वैज्ञानिक डॉ. अमितेश कुमार सिंह ने केंचुआ खाद उत्पादन की प्रक्रिया समझाई। उन्होंने बताया कि जैविक पदार्थों को केंचुआ द्वारा पचाने के बाद प्राप्त मल को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है, जो फसलों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। इसके उपयोग से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, जलधारण क्षमता बढ़ती है, और फसलों की उपज में 15-20% तक की वृद्धि हो सकती है।
बीज तकनीकी वैज्ञानिक डॉ. श्रीप्रकाश सिंह ने वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के दौरान ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कम्पोस्ट बेड की नमी को बनाए रखना आवश्यक है और अपघटन न होने वाली सामग्री, जैसे प्लास्टिक, कांच, आदि का उपयोग न करें। इसके अलावा, वर्मी कम्पोस्ट बेड का तापमान 35°C से अधिक नहीं होना चाहिए।
उद्यान वैज्ञानिक डॉ. मनीष पाण्डेय ने उद्यानिक फसलों में वर्मी कम्पोस्ट के महत्व पर चर्चा की। गृह वैज्ञानिक डॉ. प्रतिक्षा सिंह ने पोषण वाटिका में वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से उच्च गुणवत्ता वाला पोषण आहार प्राप्त करने के तरीकों पर प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के दौरान प्रक्षेत्र प्रबंधक राणा पीयूष सिंह ने प्रायोगिक तौर पर केंचुआ पालन की विधि का प्रदर्शन किया। इस पांच दिवसीय कार्यक्रम में कुल 25 प्रशिक्षणार्थी शामिल हुए, जिन्होंने वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन की तकनीकों को गहराई से सीखा।