अब शताब्‍दी और वंदे भारत एक्‍सप्रेस रेलगाडि़यों में रेडियो मनोरंजन सेवा का आनंद उठायें

उत्‍तर रेलवे 10 शताब्‍दी तथा 02 वंदे भारतएक्‍सप्रेस रेलगाडि़यों में रेडियो मनोरंजन सेवा उपलब्‍ध करायेगी उत्‍तर…

स्वीप के तहत समाज के अंतिम व्यक्ति तक को 07 मार्च को मतदान के लिए किया जा रहा है जागरूक

बाँसफोड़वा बस्ती में मतदान की दिलाई शपथशत प्रतिशत मतदान का है लक्ष्यचहनियां। विधान सभा सामान्य निर्वाचन…

यूरिया की कमी होने से किसान परेशान

राजगढ़।  क्षेत्र में यूरिया की कमी होने से किसान यूरिया के लिए परेशान हो रहे हैं।ददरा…

मांगलिक कार्य आरम्भ होने का दिन है ‘‘देवोत्थान एकादशी

देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं।दीपावली के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को ही प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी या देव-उठनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव चार मास के लिए शयन करते हैं।इस बीच हिन्दू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य शादी, विवाह आदि नहीं होते। देव चार महीने शयन करने के बाद कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान एकादशी तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन लोग तुलसी और सालिग्राम का विवाह कराते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत करते हैं। हिन्दू धर्म में प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी का अपना ही महत्त्व है। इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है उसको दिव्य फल प्राप्त होता है। उत्तर भारत में कुंवारी और विवाहित स्त्रियां एक परम्परा के रूप में कार्तिक मास में स्नान करती हैं। ऐसा करने से भगवान् विष्णु उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। जब कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी आती है, तब कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। पूरे विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है। विवाह के समय स्त्रियाँ मंगल गीत तथा भजन गाती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं और कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। हिन्दू धर्म के शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात जिन लोगों के कन्या नहीं होती उनकी देहरी सूनी रह जाती है। क्योंकि देहरी पर कन्या का विवाह होना अत्यधिक शुभ होता है। इसलिए लोग तुलसी को बेटी मानकर उसका विवाह सालिगराम के साथ करते हैं और अपनी देहरी का सूनापन दूर करते हैं। प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी के दिन भीष्म पंचक व्रत भी शुरू होता है, जो कि देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर पांचवें दिन पूर्णिमा तक चलता है। इसलिए इसे इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ या पुरूष बिना आहार के रहकर यह व्रत पूरे विधि विधान से करते हैं। इस व्रत के पीछे मान्यता है कि युधिष्ठर के कहने पर भीष्म पितामह ने पाँच दिनो तक (देवोत्थान एकादशी से लेकर पांचवें दिन पूर्णिमा तक)  राज धर्म, वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। इसकी स्मृति में भगवान् श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह के नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित किया था। मान्यता है कि जो लोग इस व्रत को करते हैं वो जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करते हैं। देवोत्थान एकादशी की कथा एक समय भगवान विष्णु से लक्ष्मी जी ने कहा-…

एक दीप जलाना चाहूं…”

“एक दीप जलाना चाहूं…”मन की बगिया सजाना चाहूं मैं   एक  दीप  जनाना  चाहूं ।।एक दीप जीवन के…

इति हुआ इतिहास एक…

” इति हुआ इतिहास एक…”इति  हुआ मेरी जीवन की इतिहास एक ।प्यासा ही रह गया  दिल…

दीवाली का आधुनिक  कलेवर मुग़ल काल में ही निर्मित हुआ

दीवाली मुबारक तमसो मा ज्योतिर्गमय  दरबार ए मुग़लिया की दीवाली    दीवाली का जश्न पौराणिक के…

स्कूलों का कायाकल्प ठीक से न हुआ तो जिम्मेदारों पर होगी कड़ी कार्रवाई- डीएम

चंदौली/ जिलाधिकारी संजीव सिंह की अध्यक्षता में स्कूलों का कायाकल्प, सामुदायिक शौचालय निर्माण,  पंचायत भवनों का…

बसपा प्रदेश अध्यक्ष के रेणुकूट प्रथम आगमन पर जोरदार स्वागत

रेणुकूट – सोनभद्र बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीमराज भर के रेणुकूट प्रथम आगमन पर बौद्ध बिहार…

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