लघु व सूक्ष्म उद्योग व्यापार के लिए “मुद्रा” का वरदान

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–    प्रो० एम० के० अग्रवाल, अर्थशास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

   भारत सदैव से उद्योग व व्यापार से भरपूर देश रहा है जहां पर कार्यकुशलता , पारिवारिक व्यापारी गुण, नवाचार तथा उद्यमिता सांस्कृतिक विरासत के रूप मे उपलब्ध रही है। इसने अर्थव्यवस्था को सदैव बुनियादी रूप से मज़बूत करने का काम किया है। स्वतंत्र भारत में लघु व छोटे उद्योग धंधो आदि को लेकर सरकार भी सजग रही है । यह अलग बात है कि बीच–बीच में नीतिगत परिवर्तनों के कारण इस रोजगार सघन क्षेत्र को आघात भी लगता रहा है। प्रायः अपने संसाधनो व उद्यमीयता से संचालित इस तरह की इकाइयों को बड़े उद्योगों व इकाइयों से चुनौती मिलने से इसको संभालने की आवश्यकता बढ़ गयी है। ऐसे में उन्हे बैंको से ऋण सुविधा की प्रायः आवश्यकता रहती है किन्तु उनको बैंकों से अपेक्षित सहयोग मिलने मे समस्या रहती है। यह बात बारम्बार भारतीय अर्थव्यवस्था में देखने को मिलता है कि यह छोटे तथा लघु व्यापार व औद्योगिक इकाइयां न केवल अपरिहार्य है अपितु यह आय सृजन, रोजगार तथा परंपरागत तकनीकियों, कौशल आदि के प्रमुख प्रकाश स्तम्भ हैं।

     छोटे तथा लघु व्यापारिक व औद्योगिक इकाइयों का महत्व व उनकी वित्तीय आवश्यकताओं को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 08 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) का शुभारम्भ किया। इसको लोग आम बोल चाल में मुद्रा लोन से भी संबोधित करते हैं। यह पूरे भारत मे एक साथ लागू किया गया। इसका उद्येश्य था कि भारत में उपलब्ध वित्तीय संसाधनों से उन सभी को आच्छादित किया जाये जो आर्थिक विकास के लिए भारत मे आवश्यक है। वास्तव मे वर्तमान परिस्थिति में हमेशा यह महसूस किया जाता है कि लघु व छोटी इकाइयों के सामने सदैव वित्तीय शुष्कता का संकट रहता है। यह शुष्कता कार्यशील पूंजी मे कमी के कारण हो सकती है, मशीन , फर्नीचर, भवन आदि के कारण हो सकती है, या फिर अचानक आए किसी प्रकार के अन्य दबावों के कारण हो सकती है।

     प्रधानमंत्री मोदी ने समावेशी व पोषणीय विकास की रणनीति के अंतर्गत छोटे तथा लघु व्यापारिक व औद्योगिक इकाइयों की वित्तीय शुष्कता दूर करने के लिए ही 08 अप्रैल 2015 को मुद्रा योजना को प्रारम्भ किया गया। इसके अंतर्गत विभिन्न इकाइयों को देश की व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु वित्त बैंक, सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ ऋण प्रदान करती हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अंतर्गत तीन श्रेणी के ऋण उपलब्ध कराये जाते है। प्रारम्भिक अवस्था मे “शिशु ऋण” प्रदान किया जाता है जो कि रु० 50,000 तक हो जाता है। इसके बाद यदि लाभार्थी का बैंक रिकॉर्ड ठीक रहता है तो उन्हे “किशोर ऋण” प्रदान किया जाता है। और अंत मे “तरुण ऋण” भी प्रदान किया जाता है। “किशोर ऋण” की सीमा रु० 50,000 से रु० 5 लाख तक होती है और “तरुण ऋण” की सीमा रु० 5 लाख से रु० 10 लाख तक होती है।

     मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एण्ड रिफाइनेन्स एजेन्सी लिमिटेड) एक गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था है जो भारत मे लघु इकाइयों के विकास को सहायता पहुंचाता है। यह युवा वर्ग को स्वावलंबी बनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छोटी इकाइयों को आय व रोजगार बढ़ाने हेतु प्रमुखतया निम्न उदयेशों हेतु ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाती है :

Ø विक्रेताओं, व्यापारियों, दुकानदारों तथा अन्य सेवा क्षेत्र की गतिविधियों हेतु व्यावसायिक ऋण।

Ø मुद्रा कार्ड के माध्यम से कार्यशील पूंजी ऋण

Ø सूक्ष्म इकाइयों हेतु उपकरणों के लिए ऋण

Ø व्यावसायिक उपयोग हेतु यातायात वाहन ऋण

Ø गैर कृषि आय संवर्द्धन हेतु कृषि-संबन्धित इकाइयों को ऋण

Ø अन्य संबन्धित ऋण

          इन्हीं कारणों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का महत्व समावेशी व पोषणीय विकास हेतु बढ़ जाता है। यदि हम देखते हैं तो पता चलता है कि भारत मे मुद्रा योजना ने छोटी इकाइयों के लिए संजीवनी का काम किया है। तालिका मे 2015-16 से लेकर 2022-23 तक की मुद्रा लोन मे प्रगति को दर्शाया गया है। यह ऋण प्रारम्भिक वर्ष मे ही लगभग 3.5 करोड़ इकाइयों को प्रदान किया गया था जो बढ़कर 2019-20 में 6.2 करोड़ तक पहुँच गया। कोरोना संकट के कारण अगले वर्षों में कुछ कमी आयी थी। फिर भी यह 2020-21 तथा 2021-22 में 5 करोड़ इकाइयों से अधिक रहा है जबकि 2022-23 में यह 6 करोड़ के क़रीब पहुँच चुका है।

तालिका : भारत में मुद्रा योजना की प्रगति

वित्तीय वर्षस्वीकृत पीएमएमवाई ऋणों की संख्या (लाख)स्वीकृत राशि (करोड़ रु)वितरित राशि (करोड़ रु)
2015-2016348.8137449.27132954.73
2016-2017397.0180528.54175312.13
2017-2018481.3253677.10246437.40
2018-2019598.7321722.79311811.38
2019-2020622.5337495.53329715.03
2020-2021507.4321759.25311754.47
2021-2022538.0339110.35331402.20
2022-2023588.7432712.84426084.04

किन्तु ऋण राशि के वितरण के रूप में बहुत ही उत्साह जनक तथ्य सामने आ रहें है। केवल कोरोना वर्ष 2020-21 के दौरान ही विगत वर्ष की तुलना में ऋण वितरण में मामूली कमी आयी थी, अन्यथा 2015-16 से 2022-23 तक ऋण वितरण में लगातार वृद्धि होती रही है। स्थिति यह यह है कि वर्ष 2015-16 में कुल ऋण वितरण रु० 1.33 लाख करोड़ था जो दो वर्षों में ही बढ़कर लगभग दो गुना के क़रीब हो गया। 2022-23 में यह 2015-16 कि तुलना में तीन गुना से भी अधिक होकर रु० 4.3 लाख करोड़ हो गया। इस प्रकार मात्र आठ वर्षों मे ही मुद्रा ऋण मे तेज़ी से विस्तार के कारण कोरोना काल मे होने वाले आर्थिक संकट से अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार हो पाया। इससे आर्थिक संकट की विभीषिका को काफी कम किया जा सका है। यहाँ यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि जितनी भी राशि ऋण के लिए स्वीकृत की गई थी और जितनी राशि का वास्तविक वितरण लाभार्थियों को किया गया, दोनों मे कोई विशेष अंतर नहीं है। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि मुद्रा लोन को बैंकिंग क्षेत्र काफी महत्व दे रहें हैं जिसकी अपेक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लघु इकाइयों के माध्यम से आय तथा रोजगार वृद्धि के लिए किया था। यह एक सफल तथा उत्साहवर्द्धक योजना साबित हुई है।    

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