मनोज पांडेय
प्रयागराज। श्रीराम के जीवन को समझने की आवश्यकता है। यह समरसता का सबसे बड़ा प्रतीक हैं। उन्होंने अपने जीवन में त्याग, अनुशासन और विनम्रता का जो आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया है, वह इस आधुनिक काल में भी हमारे लिए एक पथ-प्रदर्शक के रूप में सहज ही भूमिका निभाता है। निषादराज को गले लगाकर श्रीराम ने यही समझाने की कोशिश की है कि मित्रता बराबरी का ही प्रतीक है। श्रीराम ने पग-पग पर अपने कृत्यों से एकता और समरसता तथा अभेदता का संदेश दिया है। सबरी के जूठे बैर का राम के द्वारा खाया जाना राम के अभेद दृष्टि और समरसता के महाभाव का सबसे अद्भुत और श्रेष्ठ उदाहरण है। माघ मेला में लोअर झूंसी स्थित शिविर में श्रीराम कथा का वर्णन करते हुए चित्रकूट के रामायणी कुटी सेवा न्यास के अध्यक्ष स्वामी रामहृदय दास ने श्रोताओं को बताया कि श्रीराम ने जिससे भी मित्रता की उससे अपना रिश्ता पूरे दिल से निभाया। महान राजा होते हुए भी उन्होंने हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ मित्रता की। केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण सभी मित्रों के लिए भगवान राम ने कई बार संकट झेले और अपनी सच्ची मित्रता का परिचय दिया।
श्री राम ने अपना पूरा जीवन एक मर्यादा में रहकर व्यतीत किया। उन्होंने अपने आचरणों से हर किसी के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। एक आदर्श मनुष्य,पुत्र,भाई और पति होने के साथ-साथ एक आदर्श कुशल शासक भी थे। उनके शासन काल में व्याप्त सुव्यवस्था के कारण ही आज भी रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। स्वामी रामहृदय दास ने बताया कि श्रीराम के सहनशीलता और धैर्य का वर्णन करते हुए बताया कि लंकाधिपति रावण द्वारा माता सीता के अपहरण के बाद भी उन्होंने संयम से काम लेते हुए सही समय की प्रतीक्षा की। सहनशीलता की पराकाष्ठा प्रस्तुत किया। हर व्यक्ति को भगवान राम के इस गुण को अपनाना चाहिए। उनमें दयालुता का भाव कूट-कूट कर भरा था। वह पशु-पक्षी से लेकर हर प्राणी के लिए दयालु स्वभाव रखते थे। भगवान राम ने सुग्रीव, हनुमानजी, केवट, निषादराज, जाम्बवंत और विभीषण सभी के प्रति दया भाव दिखाई. राजा होते भी उन्होंने इन लोगों को समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया।
श्रीराम एक ऐसे नायक हैं, जो धर्म, जाति और संकीर्णता के दायरे से मुक्त हैं। वे सिर्फ और सिर्फ मानवीय आदर्श के मानवीकृत रूप हैं। आदि कवि वाल्मीकि से लेकर मध्यकालीन कवि तुलसी तक ने उन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बारे में इतना साहित्य रचा गया है कि शायद ही किसी नायक के इतने चरित्र गढ़े गए हों। भारत के अलावा पश्चिमोत्तर में कांधार देश तो पूर्व में बर्मा, स्याम, थाईलैंड और इंडोनेशिया तक राम कथा के स्रोत मिलते हैं। श्रीराम को हर जगह अयोध्या का राजा बताया गया है, बस बाकी चरित्रों में भिन्नता है। श्रीराम आदर्श, धीरोदात्त नायक हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उनके अन्दर सागर जैसी गम्भीरता है और उनके चरित्र में पहाड़ सदृश ऊंचाई। वे समाज में एक ऐसे चरित्र को प्रतिस्थापित करते हैं, जिस चरित्र से पूरा मानव समाज गरिमा के साथ प्रकट होता है। उनमें अनुशासन है, वे मां-बाप और गुरु के आज्ञाकारी हैं. लोभ तो उनमें छू तक नहीं गया है।
राम एक ऐसे नायक हैं, जो धर्म, जाति और संकीर्णता के दायरे से मुक्त हैं. वे सिर्फ और सिर्फ मानवीय आदर्श के मानवीकृत रूप हैं. आदि कवि वाल्मीकि से लेकर मध्यकालीन कवि तुलसी तक ने उन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है. लेकिन एक आदर्श नायक के सारे स्वरूप उनमें निहित हैं. हर कवि ने राम को अपनी नज़र से देखा और उनके अलौकिक गुणों की व्याख्या अपनी संवेदना से की। मूल आधार वाल्मीकि रामायण है, लेकिन क्षेपक अलग-अलग हैं। जैसे तमिल के महान कवि कंबन ने अपने अंदाज़ में गाया है तो असम के माधव कन्दली का अंदाज़ अलग है। उन्होंने 14वीं शताब्दी में सप्तकांड रामायण लिखी थी, लेकिन वहां लोकप्रिय हुई कृतिवास की बांग्ला में लिखी गई रामायण। जितने कवि उतने ही अंदाज़, किन्तु राम कथा एक है। यह विविधता ही राम कथा को और मनोहारी तथा राम के चरित्र को और उदात्त बनाती है।
एक प्रसंग आता है वानर राज बालि ने अपने छोटे भाई को लात मारकर महल से निकाल दिया था और उसकी पत्नी को अपने महल में दाखिल करवा लिया था तब श्रीराम ने जब बालि को मारा तो उसने कहा धर्म हेतु अवतरेहु गुसाईं, मारेहु मोहि ब्याधि की नाईं। मैं बैरी सुग्रीव पियारा, कारन कवन नाथ मोहिं मारा।।” जब भगवान श्रीराम ने उसे और वहां उपस्थित लोगों से कहा, “अनुज वधू, भगिनी, सुत-नारी, सुन सठ कन्या सम ये चारी। इन्हें कुदृष्टि बिलोकहि जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई।” श्रीराम ने एक मर्यादा रखी कि छोटे भाई की पत्नी, बहन और पुत्रवधू अपनी स्वयं की कन्या के समान है. और इन चारों पर बुरी नजर रखने वाले को मौत के घाट उतारना गलत नहीं है। स्वामी जी ने बताया कि यही राम की विशेषता थी जिसके कारण आज भी राम हमारे रोम-रोम में समा गए हैं. राम के बिना क्या हिंदू माइथोलॉजी, हिंदू समझदारी और हिंदू समाज व संस्कृति की कल्पना की जा सकती है। श्रीराम इसीलिए तो पूज्य हैं, आराध्य हैं और समाज की मर्यादा को स्थापित करने वाले हैं। वे किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को सौंपते हैं और लंका नरेश रावण का युद्घ में वध करने के बाद वहां का राज्य रावण के छोटे भाई विभीषण को दिया।